नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)। महज 17 साल की उम्र में देश छोड़ कर चीन भाग गई हयनसियो ली को ऐसा करने के लिए उत्तर कोरिया की सरकार तथा उनके आसपास भुखमरी से जूझ रहे लोगों की तकलीफ ने मजबूर किया। ली को इसलिए भी अपना देश छोड़ना पड़ा, क्योंकि वहां का समाज अत्यधिक निगरानी वाला
नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)। महज 17 साल की उम्र में देश छोड़ कर चीन भाग गई हयनसियो ली को ऐसा करने के लिए उत्तर कोरिया की सरकार तथा उनके आसपास भुखमरी से जूझ रहे लोगों की तकलीफ ने मजबूर किया। ली को इसलिए भी अपना देश छोड़ना पड़ा, क्योंकि वहां का समाज अत्यधिक निगरानी वाला
तथा डर को दमन के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाला था।
ली ने अपनी पुस्तक में 1997 में उत्तर कोरिया से भागने से लेकर 2008 में दक्षिण कोरिया पहुंचने तक की यात्रा साझा की है। ‘द गर्ल विद सेवन नेम्स’ में उन्होंने अपनी जिंदगी दिखाई है, जब विभिन्न पहचान के साथ अपनी जिंदगी जीते हुए उन्होंने अधिकारियों से अपनी पहचान छुपाने की कोशिश की।
हयनसियो ली सिर्फ एक नाम नहीं, जिसके साथ वह पैदा हुई हैं, बल्कि एक नाम भी है जिससे एक पुस्तक की शुरुआत होती है। वह अपने मामा-मौसियों को अंकल पुअर, अंकल मनी, अंकल ओपियम और आंट ओल्ड के नाम से संबोधित करती हैं, जिसका सीधा सा मकसद उन्हें सरकार के विरोध से बचाना है।
ली ने आईएएनएस को दिए ईमेल साक्षात्कार में कहा कि कई अन्य उत्तर कोरियाई नागरिकों की तरह उनका भी मानना था कि उनका देश इस धरती पर सबसे अच्छा है और उनके नेता ईमानदारी से उनकी रक्षा कर रहे हैं तथा उन्हें अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
बचपन में उनका पसंदीदा विषय डियर लीडर्स का क्रांतिकारी इतिहास था, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह महत्वपूर्ण है।
वह चाइनीज टेलीविजन को गुपचुप तरीके से देख कर बड़ी हुईं और इससे बेहद प्रभावित थी। उन्होंने सोचना शुरू किया कि दुनिया उत्तर कोरिया से बड़ी है।
उन्हें ऐसे संकेत मिलने शुरू हो गए कि चीजें वैसी नहीं हैं, जैसा वह सोचती आई हैं।
बचपन की जो सबसे महत्वपूर्ण घटना उन्हें याद है, वह सार्वजनिक स्थान पर किसी को फांसी दिया जाना।
उन्होंने कहा, “मैंने एक व्यक्ति को रेलवे पुल में फंदे से टंगा देखा। मैं उस डरावने अहसास को नहीं भूल पाई।”
ली ने आईएएनएस को बताया, “उत्तर कोरिया सरकार डर को दमन के हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है, इसलिए हमें पता था कि हमें सरकार के खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “उत्तर कोरिया शासन में निगरानी की एक व्यापक व्यवस्था थी, जहां पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की जासूसी करते हैं और कोई भी एकदूसरे पर भरोसा नहीं करता। पति और पत्नी भी एकदूसरे को कही जाने वाली बातों को लेकर सतर्क रहते हैं क्योंकि अगर उनका तलाक हुई तो उनके लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।”
शुरुआत में ली ने इन चीजों को सामान्य रूप से लिया, क्योंकि एक उत्तर कोरियाई नागरिक होने के नाते उन्हें पता था कि सभी को अपने कहे हुए शब्द के लिए सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि अगर कोई ऐसा नहीं करता तो उसे कड़ा दंड दिया जाता।
जब 1990 में देश में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हुई, उन्हें यह महसूस हुआ कि देश गंभीर समस्या के ईर्द गिर्द घूम रहा है।
उन्होंने कहा, “मेरे मां अपनी सहकर्मी की बहन का पत्र लेकर आई थी, जिसका पूरा परिवार भुखमरी से मरने के कगार पर था। मैं जानकर हैरान थी कि यह हमारे देश में हो रहा है। इसके कुछ समय बाद ही मैंने सड़क पर भिखारियों की फौज और यहां तक कि शवों को भी देखा।”
ली का परिवार सीमा के नजदीक रहता था और वह अपने तस्कर मित्र तथा सीमा सुरक्षा गार्ड की मदद से सीमा पार चली गईं। वह बर्फ बन गई नदी के ऊपर बनी सीमा के जरिए चीन में घुसी, जहां वह करीब एक दशक तक रही, जो उनके लिए तकलीफदेह था।
30-35 साल की ली उत्तर कोरिया में मानवाधिकार तथा दक्षिण कोरिया में उनके देश से भाग कर आए लोगों के लिए अभियान चला रही हैं, जिसका पहला कदम लोगों को जागरूक करना है।
वह कहती हैं, “उत्तर कोरिया में कई दशकों से अपने लोगों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इसको लेकर अब जागा है।”
उन्होंने कहा, “विश्वभर से कई लोगों ने मुझसे संपर्क किया और मुझे वहां के हालात के बारे में पूछा और कहा कि वे उत्तर कोरिया के हालात से अवगत नहीं हैं। मेरा मुख्य मकसद उत्तर कोरिया से दूसरे देशों में भाग आए लोगों की मदद करना है, जिन्हें आजादी की काफी कीमत चुकानी पड़ी है।”