लखनऊ, 7 फरवरी (आईएएनएस)। बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी उत्तर प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने अब उप्र संगठन के मन को टटोलना शुरू कर दिया है।
लखनऊ, 7 फरवरी (आईएएनएस)। बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी उत्तर प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने अब उप्र संगठन के मन को टटोलना शुरू कर दिया है।
कुछ पदाधिकारियों की मानें तो उप्र में यदि भाजपा कोई नया प्रयोग करती है तो उसका हश्र दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसा ही होगा।
उप्र में विधानसभा चुनाव भले ही साल भर दूर हों, लेकिन भाजपा की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। भाजपा अध्यक्ष शाह रविवार को प्रदेश कोर ग्रुप के नेताओं के साथ अहम बैठक करने जा रहे हैं, जिसमें राज्य की जमीनी हकीकत का जायजा लेंगे।
यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें राज्य के जातीय और सामाजिक समीकरणों पर मिलने वाली प्रमुख नेताओं की राय नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में केंद्रीय नेतृत्व के लिए काफी मददगार होगी।
प्रदेश की चुनावी रणनीति के मद्देनजर भाजपा राज्य में नए प्रदेश अध्यक्ष का फैसला अभी तक नहीं किया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के समय भी उप्र में पार्टी संगठन के चुनाव नहीं कराए गए थे, क्योंकि चुनाव के लिहाज से जातीय व सामाजिक समीकरणों को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व तुरंत कोई फैसला नहीं ले सका था।
भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया, “दिल्ली व बिहार की हार के बाद उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा नेतृत्व पूरी तरह सतर्क है। वह राज्य के किसी भी नेता की राय को हल्के में नहीं ले रहा है और केंद्रीय नेताओं की राय पर पूरी तरह भरोसा भी नहीं कर रहा है।”
पार्टी नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में आए आधा दर्जन नामों पर भी राज्य के सभी प्रमुख नेताओं से राय-मशविरा करना चाहता है।
भाजपा के सूत्र बताते हैं कि पार्टी की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) पर कड़ी नजर है, जिसने राज्य में अगड़ी जातियों को अपने करीब लाने के लिए उन्हें सौ से ज्यादा टिकट देने के संकेत दिए हैं। भाजपा नेतृत्व को आशंका है कि अगर उसने अगड़ी जाति के मौजूदा अध्यक्ष को हटाकर किसी पिछड़ा या दलित को अध्यक्ष बनाया तो अगड़ी जातियों के ‘आधार बैंक’ में बसपा सेंध लगा सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय राय ने भी आईएएनएस से बातचीत के दौरान इस बात को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि पिछड़ों में भी लोधी व कुर्मी के बीच में पार्टी उलझी हुई है।
बकौल राय, “अमित शाह शायद यही चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश के नए अध्यक्ष की घोषणा से पहले नेताओं से पूरी तरह चर्चा कर ली जाए, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि उप्र में यदि भाजपा कोई नया प्रयोग करेगी तो उसका हश्र भी बिहार और दिल्ली की तरह ही होगा।”
इधर, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरीश श्रीवास्तव ने आईएएनएस से बातचीत में हालांकि इस बात को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि पार्टी जब भी चुनाव में उतरती है तो वह हर परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही फैसला लेती है। रही बात नए प्रयोग की, तो पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की क्षमता है। पार्टी आला कमान जो भी फैसला लेगा वह पार्टी के लिए हितकर ही होगा।