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 ‘गांधी मोदी के लिए मजबूरी का नाम’ (मोदी सरकार : 1 साल) | dharmpath.com

Monday , 9 June 2025

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‘गांधी मोदी के लिए मजबूरी का नाम’ (मोदी सरकार : 1 साल)

नई दिल्ली, 26 मई (आईएएनएस)। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले आम चुनाव के दौरान जिन नारों की दुहाई देकर देश की सत्ता पर कब्जा जमाया, सत्ता में आने के बाद वे नारे अब दरकिनार कर दिए गए हैं। चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान सरदार पटेल मोदी के आराध्य थे। अब ‘गांधी का चश्मा’ उनकी सरकार का सिंबल बन गया है। देश-दुनिया में हर जगह वह गांधी की चर्चा करना नहीं भूलते।

नई दिल्ली, 26 मई (आईएएनएस)। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले आम चुनाव के दौरान जिन नारों की दुहाई देकर देश की सत्ता पर कब्जा जमाया, सत्ता में आने के बाद वे नारे अब दरकिनार कर दिए गए हैं। चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान सरदार पटेल मोदी के आराध्य थे। अब ‘गांधी का चश्मा’ उनकी सरकार का सिंबल बन गया है। देश-दुनिया में हर जगह वह गांधी की चर्चा करना नहीं भूलते।

यह अपने आप में अहम सवाल है। सवाल यह भी है कि गांधी विरोधी विचारधारा के बल पर गुजरात में तीन कार्यकाल तक गद्दी संभालने के बाद अब गांधी की माला जपने की मोदी की ऐसी क्या मजबूरी हो गई? और यह भी कि क्या गांधी को उन्होंने वाकई गांठ लिया है?

ये सवाल महत्वपूर्ण इसलिए भी हैं, क्योंकि मोदी की सत्ता का साल पूरा हो गया है। इस दौरान गांधी के चश्मे से उन्होंने कुछ देखा भी है क्या?

राष्ट्रीय राजधानी स्थित गांधी स्मारक निधि के मंत्री, वयोवृद्ध गांधीवादी रामचंद्र राही मोदी के इस गांधी प्रेम को खारिज कर देते हैं। राही कहते हैं कि मोदी ने गांधी का चश्मा जरूर चुरा लिया है, लेकिन गांधी से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

राही ने आईएएनएस से कहा, “दरअसल, नाम वही लिया जाता है, जिससे कुछ पुण्य मिले। (महात्मा) गांधी के अलावा आखिर कौन-सा ऐसा नाम है, जिसे प्रधानमंत्री के रूप में मोदी देश के बाहर ले सकते हैं?”

राही ने कहा कि मोदी ने गुजरात में जिस तरीके से शासन किया, उनके लिए उस तरह से देश पर शासन कर पाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा, “गुजरात दंगे के कारण मोदी की छवि दुनियाभर में बिगड़ी है। अपनी छवि सुधारने के लिए गांधी का नाम लेना उनकी मजबूरी बन गई है।”

राही ने आगे कहा, “लेकिन मोदी की नीतियां गांधी विरोधी हैं। मेक इन इंडिया का गांधी के स्वदेशी-मंत्र से कोई लेना-देना नहीं है। करेंसी आधारित अर्थव्यवस्था से देश मजबूत नहीं होगा, उत्पादक की मजबूती से देश मजबूत होगा। देश को मेक इन इंडिया नहीं, मेड ऑफ इंडिया चाहिए।”

गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत, राही का समर्थन करते हैं। वह कहते हैं, “वैसे तो मोदी को गांधी की कसौटी पर कसना ही गलत है, लेकिन चूंकि वह गांधी के प्रतीकों और उनके नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं, लिहाजा गांधी के चश्मे से उन्हें तौला जाना लाजिमी भी है।”

गौरतलब है कि मोदी इस दौरान देश में और देश से बाहर जहां भी गए हैं, उन्होंने गांधी का बखान किया है। सत्ता संभालने के बाद 15 अगस्त के अपने संबोधन में उन्होंने गांधी के नाम पर स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की। गांधी के चश्मे को इसका प्रतीक बनाया।

प्रशांत ने कहा, “गांधी जिस कारण आज जिंदा हैं, और आगे भी जिंदा रहेंगे, वह इसलिए कि उन्होंने नए प्रतिमान गढ़े, नई परंपराएं स्थापित कीं। लेकिन मोदी आज उन परंपराओं को ध्वस्त कर खड़े हुए हैं।”

प्रशांत ने कहा, “गांधी का नाम तो वह इसलिए लेते हैं, क्योंकि यह सिक्का पुराना होने के बाद भी देश के बाहर तेजी से चलता है। देश के प्रतिनिधि होने के नाते भी मोदी गांधी का नाम लेते हैं। यह उनकी एक चालाकी भरी मजबूरी है।”

महात्मा गांधी द्वारा अहमदाबाद में 1920 में स्थापित गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलनायक (कुलपति) सुदर्शन अयंगर कहते हैं, “मोदी जबतक गुजरात में थे, तबतक उन्होंने सरदार पटेल को महिमामंडित करने की कोशिश की। आरएसएस की विचारधारा को आगे बढ़ाया, चिमनभाई पटेल की यादें ताजा कर दी। लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सरदार उनके लिए छोटे पड़ गए। अब उन्हें गांधी जैसे लंबे कद वाले व्यक्ति की जरूरत है।”

अयंगर ने आईएएनएस से कहा, “लेकिन मोदी को गांधी के विकेंद्रित, पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था से कोई मतलब नहीं है। उनके लिए सबकुछ बाजार है। मोदी सबकुछ अपनी मुट्ठी में रखना चाहते हैं। नीति आयोग इसका एक नमूना है। यही गुजरात मॉडल भी है, जिसे वह पूरे देश पर थोपना चाहते हैं।”

मोदी ने केंद्र में सत्ता संभालने के बाद देश के विकास में प्रमुख भूमिका निभा रहे योजना आयोग को समाप्त कर उसके स्थान पर नीति (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) आयोग की स्थापना की।

दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान से प्रकाशित प्रतिष्ठित पत्रिका, गांधी मार्ग के संपादक अनुपम मिश्र के विचार अलहदा हैं। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र के छोटे-छोटे घरौदों में पल-बढ़ कर बाहर निकले लोग अधिक विस्तार पाने के बाद भी अक्सर अपने पुराने घरों, परिवारों को नहीं भुला पाते। उस परिवार से जुड़े रहने की उनकी मजबूरी भी होगी। लेकिन जब वे अपने यहां से निकलकर बाहर बड़े मंचों पर जाते हैं तो वे उद्दात्त विचार को ही ले जाते हैं। ऐसा न करने पर वे अप्रासंगिक जो हो जाएंगे।”

राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष अनुपम ने किसी संगठन, या व्यक्ति का नाम लिए बगैर कहा, “आज जो नितांत संकीर्ण विचारधारा और हिंसा से भरे संगठन हैं, उनका आतंक जरूरत व्याप्त है, लेकिन उनकी कोई मान्यता नहीं है। किसी (मोदी) के लिए गांधी का नाम लेने के पीछे यह भी एक संकेत हो सकता है।”

अनुपम ने आगे कहा, “सर्वसम्मति उदार, उद्दात्त विचारों को ही मिलती है। रचनात्मकता संकीर्ण विचारों से नहीं होती।”

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