Tuesday , 14 May 2024

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गुम हो रही बॉलीवुड की स्वाभाविक शैली : दिबाकर (साक्षात्कार)

कोलकाता, 15 मार्च (आईएएनएस)। फिल्म में पैसे के बजाय गंभीरता और यथार्थ को तव्वजो देने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दिबाकर बनर्जी का मानना है कि बॉलीवुड यथार्थ दिखाने वाली शैली खोता जा रहा है। बॉलीवुड असलियत से दूरी बना रहा है और महज पैसा कमाने की ओर अग्रसर हो रहा है।

कोलकाता, 15 मार्च (आईएएनएस)। फिल्म में पैसे के बजाय गंभीरता और यथार्थ को तव्वजो देने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दिबाकर बनर्जी का मानना है कि बॉलीवुड यथार्थ दिखाने वाली शैली खोता जा रहा है। बॉलीवुड असलियत से दूरी बना रहा है और महज पैसा कमाने की ओर अग्रसर हो रहा है।

‘खोसला का घोसला’ फिल्म के निर्माता दिबाकर कहते हैं कि सच्चाई पेश करने वाली वह शैली अभी भी कुछ बांग्ला फिल्मों में देखी जा सकती है।

दिबाकर ने यहां एक साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, “बांग्ला रंगमंच कतई नाटकीय नहीं था। यह स्वाभाविक और बेहद संयमित, बहुत नियंत्रित था इसलिए आप अभी भी उस सख्ती या अंकुश के लक्षण देख सकते हैं। यह एक अच्छी चीज है, क्योंकि बॉलीवुड वह प्रतिभा खो रहा है, क्योंकि मेरे ख्याल से यह बड़ा और बड़ा और बड़ा हो रहा है। इसका सरोकार ज्यादा पैसा, ज्यादा क्षमता पाने से है।”

दिल्ली में जन्मे दिबाकर बांग्ला फिल्मोद्योग के नामी अभिनेता-फिल्म निर्माता प्रसन्नजीत चटर्जी के साथ ‘शंघाई’ फिल्म में काम कर चुके हैं। वह बांग्ला फिल्मोद्योग के और कलाकारों के साथ भी काम करने के इच्छुक हैं।

दिबाकर ने कहा, “मेरे ख्याल से बांग्ला सिनेमा में अब भी यथार्थ बयान करने वाली उस लोकप्रिय शैली के अंश बाकी हैं, जिसका इस्तेमाल इसकी फिल्मों और रंगमंच में इतने अच्छे से दिखाई देता था।”

दिबाकर ने अपनी आगामी फिल्म ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ में यह शैली लाने की कोशिश की है। यह फिल्म बांग्ला लेखक शरदिंदु बंद्योपाध्याय की कल्पना की उपज काल्पनिक किरदार ब्योमकेश बक्शी पर आधािरत है।

फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत, आनंद तिवारी और बांग्ला फिल्मों की अभिनेत्री स्वस्तिका मुखर्जी मुख्य भूमिका में हैं।

‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ में अलग-अलग फिल्मोद्योग से जुड़े कलाकारों को लेने के बारे में दिबाकर ने कहा कि ऐसा गंभीर किरदारों को निभाने के उनके कौशल को साबित करने के लिए किया है।

उन्होंने समझाया, “मुझे गहनता या संजीदगी पसंद है, यह पैसे से कहीं ज्यादा प्रभावपूर्ण होती है। इसलिए मेरे पास पर्दे पर एक संजीदा अभिनेता, गंभीर पटकथा या गंभीर किरदार है। मैं वास्तव में कारें दौड़ाने, धूम-धड़ाका करने पर 10 करोड़ रुपये कम खर्च करके भी दर्शकों से वैसी ही प्रतिक्रिया पा सकता हूं।”

दिबाकर अपनी फिल्मों में ‘स्टार’ लेने के खिलाफ नहीं हैं।

उन्होंने कहा, “मैं इसका (नामचीन कलाकारों की उपस्थिति) विरोधी नहीं हूं। स्टार आपकी फिल्म को बड़े स्तर पर दर्शकों तक ले जाने में फायदेमंद होते हैं, क्योंकि दर्शकों के लिए फिल्म देखने जाने की मुख्य वजहों में से एक उसमें स्टार की उपस्थिति है।”

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