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 चिदंबरम का पीछा करते उन्हीं के प्रश्न | dharmpath.com

Friday , 30 May 2025

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चिदंबरम का पीछा करते उन्हीं के प्रश्न

करीब पौने दो सौ करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम घोटाले पर तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम भी सवालों के घेरे में थे। आज तक उन आरोपों का समाधान नहीं हो सका है। मुख्य आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा का आरोप था कि चिदंबरम को इस मामले की पूरी जानकारी थी। वह घोटाले को रोकने की हैसियत में थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

करीब पौने दो सौ करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम घोटाले पर तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम भी सवालों के घेरे में थे। आज तक उन आरोपों का समाधान नहीं हो सका है। मुख्य आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा का आरोप था कि चिदंबरम को इस मामले की पूरी जानकारी थी। वह घोटाले को रोकने की हैसियत में थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

राजा का दावा था कि यदि वह आरोपी हैं तो चिदंबरम भी दोषमुक्त नहीं हो सकते। यह मामला न्यायपालिका के विचाराधीन है, लेकिन यह निर्विवाद है कि वित्तमंत्री के रूप में चिदंबरम अपनी भूमिका का उचित निर्वाह करने में विफल रहे थे। वित्तमंत्री पर लगे आरोपों का आधार था। एक यह कि वित्तमंत्री की पूर्व जानकारी के बिना स्पेक्ट्रम पर फैसला संभव नहीं था।

दूसरा, चिदंबरम ने सब कुछ जानते हुए इस घोटाले को रोकने का प्रयास नहीं किया। इसके पीछे क्या रहस्य था, इस पर कई अनुमान लगाए जा सकते हैं, लेकिन अंतिम फैसला न्यायपालिका को करना है।

विडंबना देखिए, आज यही चिदंबरम अपने ही समय में उजागर हुई आईपीएल घोटाले को लेकर सवाल उठा रहे हैं। इसका एक शर्मनाक पहलू यह है कि ललित और प्रधानमंत्री नरेंद्र के मोदी ‘सरनेम’ में समानता बताई जा रही है, जबकि ललित मोदी वैश्य और नरेंद्र मोदी पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते हैं।

इसके अलावा कांग्रेस क्या यह याद करना चाहेगी कि बोफोर्स घोटाले के मुख्य आरोपी क्वात्रोच्चि उसी के शासनकाल में भागा था। भोपाल गैस त्रासदी मामले में मुख्य अभियुक्त को सुरक्षित देश से बाहर भेजने की व्यवस्था कांग्रेस के ही एक दिग्गज नेता ने की थी। चिदंबरम ने ललित मोदी प्रकरण पर सरकार से सात सवाल पूछे हैं।

बेशक आज विपक्ष में रहते हुए उन्हें सरकार से सवाल पूछने का हक है। लेकिन सत्ता में रहते हुए यही सवाल उन्होंने अपने अंर्तमन से पूछे होते, तो उनकी सरकार घोटालों को लेकर इतनी बदनाम ना होती।

पहली बात तो यह कि भ्रष्टाचार से जुड़े किसी विषय पर आज प्रश्न पूछने का नैतिक अधिकार संप्रग सरकार में शामिल रहे लोगों को नहीं है। यही कारण है कि इनके द्वारा उठाए गये प्रश्न इन्हीं का पीछा करने लगते हैं। चिदंबरम ने पूछा कि ललित मोदी के पासपोर्ट को जब एक न्यायपालिका ने बहाल किया तो सरकार ने ऊपरी अदालत में इसके खिलाफ अपील क्यों नहीं की। इससे चिदंबरम का पीछा करने वाले प्रश्न उत्पन्न हुए।

एक, उनकी सरकार द्वारा ललित का पासपोर्ट जब्त करने से उनके खिलाफ जांच में क्या मदद मिली। दूसरा सवाल भी इसी से जुड़ा है। जिस अवधि में पासपोर्ट जब्त था, उस अवधि में चिदंबरम उन पर शिकंजा कसने में विफल क्यों रहे? अपनी इस नाकामी को लेकर उन्होंने जवाब क्यों नहीं दिया? इसके अलावा प्रश्न यह भी है कि जिस कार्य को वह चार वर्ष मे नहीं कर सके, उसे किसी दूसरी सरकार से एक वर्ष में पूरा करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।

गौरतलब है कि संप्रग सरकार ने ललित मोदी का पासपोर्ट 2011 में निरस्त किया था। मई 2014 तक चिदंबरम मंत्री रहे। इस अवधि में पासपोर्ट निरस्त रहने के बाद उन्होंने क्या कर लिया। उच्च न्यायालय ने अगस्त 2014 में पासपोर्ट बहाल किया था। इसक कोई संयोग नहीं, लेकिन उसके बाद प्रवर्तन निदेशालय की जांच में तेजी आई है।

जहां तक सुषमा स्वराज और ललित मोदी के पारिवारिक संबंधों की बात है, तो इसमें आश्चर्यजनक क्या है? ललित मोदी देश के प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने के सदस्य रहे हैं। वह जन्म से ही लंदन में नहीं हैं। पांच वर्ष पहले तक वह भारत में ही रहते थे। ऐसे में देश की शायद ही ऐसी कोई राजनीतिक पार्टी होगी जिसमें उनके मित्र न हों। कांग्रेस में भी ऐसे अनेक नेता हैं।

संप्रग सरकार में मंत्री रहे राजीव शुक्ला पर भी उनकी मदद करने के आरोप हैं। चिदंबरम ने उनके बारे में जवाब देने की मांग मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से क्यों नहीं की? इसी तरह शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल तो चिदंबरम के साथ कैबिनेट में थे। क्या इनकी ललित मोदी की मित्रता से चिदंबरम अनजान थे?

चिदंबरम गृहमंत्री भी रहे हैं, सब जानते थे। लेकिन तब उन्होंने एक बार भी अपने सहयोगियों की भूमिका पर सवाल नहीं उठाए। आज भी उनकी नजर में सुषमा ही दोषी हैं। लेकिन प्रश्न पारिवारिक मित्रता का नहीं हो सकतौ। मित्रता छोड़िए, कोई व्यक्ति अपने सगे-संबंधी के अपराधी, भ्रष्ट होने की गारंटी नहीं ले सकता।

महत्वपूर्ण यह है कि उसने जो सहायता की, उसका अपराध से कोई संबंध था या नहीं। इस कसौटी पर यह नहीं कहा जा सकता कि इस प्रकार की मदद से ललित को बच निकलने का मौका मिला। चिदंबरम पूछते हैं- सुषमा ने भारतीय दूतावास से संपर्क क्यों नहीं किया। इस पर प्रश्न चिदंबरम से होना चाहिए- जब कैंसर आपरेशन की तत्काल आवश्यकता बताई गई, तब क्या प्रक्रिया को लंबा खींचना जरूरी था?

सुषमा ने तो केवल इतना ही कहा था कि ब्रिटिश कानून के तहत संभव हो तो उन्हें पुर्तगाल जाने पर भारत को आपत्ति नहीं होगी। किसी को वीजा देना उस देश का अधिकार है। इस पर प्रश्न उठाना गलत है।

चिदंबरम ने सुषमा स्वराज की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे भाई-भतीजावाद, अधिकारों के दुरुपयोग और नियमों की अवहेलना का मामला करार दिया है। वस्तुत: चिदंबरम की कठिनाई यह है कि वह ललित मोदी पर लगे अरोपों तथा उनकी पुर्तगाल यात्रा को जोड़कर देख रहे हैं। वह योग्य हैं, दोनों का फर्क जानते हैं। एक आर्थिक अपराध का पक्ष है, दूसरा निहायत मानवीय मसला है। दोनों को अलग करके देखा जाता तो यह विवाद उत्पन्न ही नहीं होता। लेकिन कांग्रेस ने सरकार को घेरने के लिए दोनों को मिला दिया।

उसने अपने वित्तमंत्री रहे चिदंबरम को यह दिखाने के लिए आगे किया कि वह आर्थिक अपराधों का अनवरत सिलसिला चल रहा था। घोटालों के रिकार्ड चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते ही बने थे। इसलिए जब वह किसी मामले को भ्रष्टाचार से जोड़ते हैं तो खुद कठघरे में आ जाते हैं। यह नियति कभी उनका पीछा नहीं छोड़ सकती।

वह खुद अपनी बातों में इसीलिए फंस जाते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें 2011 में प्रवर्तन निदेशालय ने बताया कि ललित मोदी बिना वैध पासपोर्ट के लंदन में रहते हैं। यहां तक गनीमत है, लेकिन वह सत्रह जून 2015 को सुषमा से पूछते हैं कि वह जनाब लंदन में कैसे रह रहे हैं। जबकि मई 2014 तक वह सरकार में थे। मतलब सुषमा के मुकाबले ललित मोदी के खिलाफ कार्रवाई करने का चिदंबरम को तीन गुना अधिक समय मिला था।

इसमें संदेह नहीं कि ललित मोदी पर लगे आरोपों की तेजी से जांच होनी चाहिए। उन्हें भारत लाने का प्रयास होना चाहिए। लेकिन यह भी मानना होगा कि वह अभी अपराधी नहीं है, न्यायिक प्रक्रिया में जब कसाब जैसे आतंकी को वकील की सुविधा दी गई, तो ललित मोदी का मुकदमा लड़ना अपराध नहीं हो सकता। उनके मामले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इस प्रक्रिया का पालन गलत नहीं है।

इसमें ललित मोदी द्वारा लगाए गए आरोप की भी जांच होनी चाहिए कि उन्हें तत्कालीन मंत्री शशि थरूर की पत्नी के आईपीएल में शेयर होने का खुलासा करने के कारण फंसाया गया। (आईएएनएस/आईपीएन)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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