रायपुर, 9 जनवरी (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के लोकगीत व लोकनृत्यों पर अमेरिका में भी शोध हो रहा है। भरथरी, बांस गीत, सुआ नाच, रेला, चुटकी, धनकुल के अलावा ब्रज के फाग गीत और मध्य भारत के आल्हा को अमेरिका के अटलांटा स्थित एमरी यूनिवर्सिटी में कला संकाय के छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के साथ ही इस पर शोध भी किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ के लोकगीतों पर शोध के लिए सूबे के कांकेर जिले पहुंचीं एमरी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जोएस फ्लिकिगर ने यह जानकारी दी।
शोध के सिलसिले में दक्षिण भारत रवाना होने से पूर्व उन्होंने बताया कि भारत के कल्चर और धर्मनिरपेक्षता से सारा विश्व प्रभावित है। यहां की संस्कृति को जानने के लिए उनके अलावा अन्य कई शोधकर्ता भी आते रहते हैं। उन्होंने बताया कि हैदराबाद से वह कर्नाटक जाएंगी, जहां बहुचर्चित देवदासी प्रथा पर भी शोध करेंगी।
प्रो. फ्लिकिगर ने बताया कि छत्तीसगढ़ के लोकगीतों की पुस्तक भी एमरी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में रखी गई है। उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी में वे छत्तीसगढ़ की मितान परंपरा के बारे में भी पढ़ाती हैं। राजनांदगांव जिले की नांगलदाह निवासी महिला सरपंच दिलीप बाई वर्मा से भोजली मितान बनकर वे इस परंपरा का निर्वाहन भी कर रही हैं।
प्रोफेसर जोएस ने बताया कि भारतीय संस्कृति को समझने और अपने स्टूडेंट्स को उसे ठीक तरह समझाने के लिए वे लगभग डेढ़ साल के अंतराल में यहां आती हैं। उनके स्टूडेंट्स को भी यहां की संस्कृति खूब भाती है। यहां के लोकगीतों खासकर सुआ नाच और ब्रज के फागगीतों पर नृत्य करना वे पसंद करते हैं।
शोध के दौरान प्रोफेसर जोएस कांकेर स्थित राजमहल में रुकी थीं। उनके मेजबान कांकेर रियासत के पूर्व कुंवर सूर्यप्रतापदेव ने बताया कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को लेकर विदेशों में काफी जिज्ञासा है। उनके बड़े भाई और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पूर्व महाराजाधिराज डाक्टर आदित्य प्रतापदेव ने भी अंग्रेजी में आदिवासी परंपरा के आंगा देव के बारे में एक पुस्तक लिखी है। उसमें आदिवासी देवी-देवताओं, पुजारी व गायताओं की भूमिका के साथ-साथ आंगादेव के निर्माण, कल्पना, महत्व आदि के बारे में विस्तार से बताया है, जो कि विदेशों में काफी चर्चा में है।
उन्होंने कहा कि यहां जो भी विदेशी पर्यटक आते हैं। उनमें से ज्यादातर कैमरा लेकर सिर्फ फोटो खींचने या यहां घूमने नहीं आते, बल्कि भारतीय संस्कृति की विविधता को समझने और यहां के त्योहारों में अपनी खुशियां, सुकून तलाशने आते हैं। संस्कृति के जानकार इस कदम को सूबे के कलाकारों के लिए एक अच्छा संकेत बता रहे हैं।