संयुक्त राष्ट्र, 25 फरवरी (आईएएनएस)। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच से गरीबी उन्मूलन पर कठोरता के साथ ध्यान केंद्रित करने की मांग उठाई है। साथ ही कहा है कि गरीबी से लड़ रहे देशों की राष्ट्रीय विकास योजनाओं और जरूरतों से दानदाता देशों की खास प्राथमिकताओं को अधिक महत्व नहीं मिलना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र मिशन में भारतीय सलाहकार अमित नारंग ने बुधवार को इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल (ईसीओएसओसी) में यह बात कही। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय नीति का आदर किया जाना चाहिए एवं बाहर से निर्देश थोपने से बचा जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि हम स्पष्ट रूप से एक समेकित एजेंडे को लागू करने की बात नहीं कर सकते, तब भी पैसे देने के ढांचे हैं और क्रियान्वयन का व्यावहारिक स्वरूप है जो दानदाताओं की प्राथमिकताओं के अनुकूल है।
उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र को हर हाल में राष्ट्रीय विकास योजनाओं के साथ खड़ा होना चाहिए।”
फैसले लेने और प्राथमिकताओं के मुद्दे पर उन्होंने कहा, “इससे जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि धन देने और कार्यक्रमों की जो व्यवस्था उसमें विकसित और विकासशील देशों का असंतुलित प्रतिनिधित्व है। उसे सुधारने की जरूरत है।”
नारंग ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘एजेंडा 2030’ संक्रमण से गुजर रहा है इसलिए विकास के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए जब यूएन की व्यवस्था अपनी भूमिका पर पुनर्विचार के लिए तैयार है, तब यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह सबसे गरीब और सर्वाधिक वंचितों की जरूरतों से अपना ध्यान न हटाए।
नारंग ने ईसीओएसओसी की 70 वीं वर्षगांठ पर विशेष सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए भाषण के अंश का हवाला दिया। मोदी ने कहा था, “हम लोगों ने पिछले 70 सालों में बहुत उन्नति की लेकिन गरीबी उन्मूलन 20वीं सदी का वह सबसे बड़ा अधूरा काम है, जो अब भी बचा हुआ है। यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है जो अभी तक हासिल नहीं हुआ है।”