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 दूसरे के ‘मन की बात’ भी सुनिए मोदीजी! | dharmpath.com

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दूसरे के ‘मन की बात’ भी सुनिए मोदीजी!

March 20, 2015 6:10 pm by: Category: ब्लॉग से Comments Off on दूसरे के ‘मन की बात’ भी सुनिए मोदीजी! A+ / A-

(पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’)

thumb_102514010655अपने मन की बात तो आपने बहुत कह ली नरेंद्र मोदी जी, अब किसी दूसरे को भी अपने मन की बात सुनाने का अवसर दीजिए या अपनी ही सुनाते रहेंगे’ की रट लगाए आज नारदजी से फिर मुलाकात हो गई।

आज नारदजी अन्नाजी की टोपी पहने और एक हाथ में कांग्रेसी झंडा और दूसरे में जय जवान जय किसान का बैनर लिए मेरी ही तरफ चले आ रहे थे। नारदजी की अजब-गजब वेशभूषा देखकर मुझे बरबस ही हंसी आ गई। मेरी हंसी देखकर नारद जी क्रोधित हो गए।

मुझे डपटते हुए बोले, ‘चल हट नामुराद कहीं के! क्या तू भी किसान विरोधी व जवान विरोधी लोगों का समर्थक है?’ नारदजी को क्रोधित होते हुए देख पसीना आ गया। मैं सुबकते हुए उनके चरणों में गिरकर बोला, ‘मुझे माफ कर दें महर्षी जी, न तो मैं किसान विरोधी हूं और न ही जवान विरोधी हूं।’

मेरी इस कातरवाणी को सुनकर नारदजी का क्रोध कुछ शांत हुआ। मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘तू ठीक कहता है हरिओम! मगर देश के कर्णधार इस बात को क्यों नहीं समझते? क्यों किसानों को केवल अपने ‘मन की बात’ सुनाना चाहते हैं। एक तो बेचारे किसान ऊपर वाले की मार से परेशान हैं।

ऊपर वाले ने ही बेमौसम बरसात व ओले गिराकर किसानों की फसल का सत्यानाश कर दिया है। बेबस किसान आत्महत्या कर रहे हैं। रही जवानों की बात तो जो जवान इस देश की रक्षा अपने प्राणों की बलि देकर कर रहे हंै, उन्हीं देश विरोधी गतिविधियों की प्रशंसा करने वालों से यह हाथ से हाथ मिलाकर सरकार चला रहे हैं।’ क्या देश के इन कर्णधारों ने रहीम दासजी का यह दोहा नहीं पढ़ा है – ‘कह रहीम कैसे निभै, बेरि केरि को संग। वह झूमत रस आपने, वाको फाटत अंग।’

रहीमदास कहते हैं कि बेरी व केरि का साथ कैसे हो सकता है? एक पूरब है तो एक पश्चिम है, एक दिन है तो एक रात है, एक पार्टी राष्ट्रप्रेमियों की पीठ थपथपाती है, तो दूसरी राष्ट्र विरोधियों की पीठ थपथपाती है। एक पार्टी कहती है कि हम राष्ट्रप्रेमियों की बदौलत ही चुनाव जीते हैं, तो दूसरी पार्टी इसका श्रेय विदेशियों को देती है। जब बेरी अपने जोश में झूमती है तो केरि का अंग ही फटता है, क्योंकि बेरी में कांटे ही कांटे हैं। अब तू ही बता हरिओम! इतने पर भी यह कांटों वाली बेरी से क्यों हाथ मिलाए हैं?

क्या यह देश के जवानों, किसानों, देशवासियों के हितों पर कुठाराघात नहीं है? किसान आत्महत्या कर रहा है, यह उनकी जमीन छीन रहे हैं, जवान अपने प्राणों को न्योछावर कर देश विरोधियों को कड़ा जवाब दे रहे हंै और यह देश के कर्णधार उन देश विरोधियों की पीठ थपथपाने वालों से मिलकर सरकार चला रहे हैं। इन कर्णधारों को देश की गद्दी सौंपी थी और यह हैं कि अपने ‘मन की बात’ ही सुनाए जा रहे हैं। दूसरे के मन की बात सुन ही नहीं रहे हैं।

इतिहास साक्षी है हरिओम, जो अपनी सुनाते हैं, दूसरों की नहीं सुनते ऐसे लागों को जनता माफ नहीं करती है। मेरे इस शाश्वत सत्य को यदि इन्होंने समय रहते नहीं सुना तो फिर इनकी हैसियत सुनाने लायक भी नहीं रहेगी। इतना कहते कहते नारदजी जय जवान जय किसान का नारा देते हुए अंतध्र्यान हो गए, मेरी आंख खुली तो पता चला कि मैं तो सपना देख रहा था, लेकिन सपने में ही सही, नारदजी कह तो सोलह आने सच गए हैं।

(पं. हरि ओम शर्मा ‘हरि’ की कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं)

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