Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the js_composer domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
 देश में अघोषित ‘आपातकाल’ : अशोक वाजपेयी | dharmpath.com

Sunday , 15 June 2025

Home » भारत » देश में अघोषित ‘आपातकाल’ : अशोक वाजपेयी

देश में अघोषित ‘आपातकाल’ : अशोक वाजपेयी

भोपाल, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले चिंतक, विचारक और कवि अशोक वाजपेयी ने कहा है कि वर्ष 1975 में तो देश में घोषित तौर पर आपातकाल लगा था, मगर इन दिनों देश में अभिव्यक्ति पर अघोषित आपातकाल लगा है, जो क्या बोलें और क्या न बोलें, क्या कहें, क्या न कहें और क्या खाएं, क्या न खाएं तय करना चाहता है।

भोपाल, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले चिंतक, विचारक और कवि अशोक वाजपेयी ने कहा है कि वर्ष 1975 में तो देश में घोषित तौर पर आपातकाल लगा था, मगर इन दिनों देश में अभिव्यक्ति पर अघोषित आपातकाल लगा है, जो क्या बोलें और क्या न बोलें, क्या कहें, क्या न कहें और क्या खाएं, क्या न खाएं तय करना चाहता है।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचे वाजपेयी ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि इन दिनों अभिव्यक्ति पर हो रहे हमलों ने आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। वर्ष 1975 के आपातकाल का भी लेखकों ने विरोध किया था, उनमें अ™ोय, निर्मल वर्मा, धर्मवीर भारती जैसे कई प्रसिद्ध साहित्यकार थे, कमलेश्वर व फणीश्वरनाथ रेणु तो जेल तक गए थे। वह आपातकाल तो घोषित तौर पर आपातकाल था, वह अपने आप में लोकतंत्र विरोधी था, मगर उसके पास कानून का संबल था, लेकिन वह अनैतिक था। यह तो अघोषित आपातकाल है।

वर्तमान सत्ता और साहित्यकारों के बीच बढ़ी दूरी के सवाल पर वाजपेयी का कहना है कि साहित्य और सत्ता में तो हमेशा ही दूरी रही है। बीते 50-60 वर्षो का जो साहित्य है, वह तो मूल में व्यवथा विरोधी ही रहा है। ऐसी सत्ताएं भी होती हैं, जिनका लेखकों से संवाद होता है, असहमति के बावजूद। इसके अलावा ऐसी भी सत्ताएं होती हैं जो ऐसा संवाद न तो जरूरी समझती है और न ही करना चाहती है, इस समय ऐसी ही सत्ता है।

लेखकों पर हुए हमलों और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्यकारों द्वारा सम्मान लौटाए जाने के सवाल पर वाजपेयी का कहना है कि ‘एक तो इसे नाटकीय कार्रवाई भी कहा जा सकता है, जिसके जरिए देश का ध्यान आकृष्ट करना है, इस समय देश में जिस तरह से असहिष्णुता, धार्मिक उन्माद, हिंसा, घृणा का माहौल विकसित हो रहा है, वह खतरनाक है। दूसरी बात कि जिन सत्ताओं द्वारा इसे मौन समर्थन दिया जा रहा है या बढ़ावा दिया जा रहा है और अनदेखी की जा रही है, उनसे हमारा विरोध है, और हम यही विरोध दर्ज करा रहे हैं।

जब उनसे पूछा गया कि सरकार को क्या करना चाहिए, तो उन्होंने कहा, “यह तो सरकार जाने कि उसे क्या करना चाहिए।” उन्होंने आगे जोड़ा कि सरकार को मूल समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए, सरकार साहित्यकारों की ओर ध्यान दे या न दे, मगर वह कारगर कदम उठाए, हर स्तर पर कार्रवाई करे, उसे किसी प्रदेश की कानून व्यवस्था का सवाल बताकर टालने की कोशिश न करे।

केंद्र सरकार के कई मंत्रियों और भाजपा संगठन से जुड़े लोगों द्वारा सम्मान लौटाने वाले साहित्यकारों को ‘वामपंथी’ और ‘कांग्रेसी’ करार दिए जाने पर वाजपेयी ने कहा, “अव्वल कुछ साहित्यकार जरूर वामपंथी हैं, बहुत से ऐसे हैं जो वामपंथी नहीं हैं, जैसे मैं, शशि देशपांडे, नयनतारा सहगल। और कांग्रेसी कहने का क्या मतलब, इनमें से कौन है, जिसे कांग्रेस ने लाभ पहुंचाया हो.. इनमें से दो तो ऐसे हैं, जिन्होंने कांग्रेस के काल में दिए गए पद्मभूषण सम्मान लेने से इनकार कर दिया था।”

यह जिक्र करने पर कि आप लोगों पर राजनीतिक दलों से प्रभावित होने और राजनीति करने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं, वाजपेयी ने कहा, “अगर राजनीति हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन में इस कदर घुसपैठ कर रही है, तो उसके प्रतिरोध स्वरूप हम कुछ क्यों न करें और अगर यह राजनीति है तो हमको ऐसी राजनीति करने का अधिकार क्यों नहीं है? अगर यह राजनीति है तो हमको भी अधिकार है।”

उन्होंने सवालिया अंदाज में कहा, “जब आप हममें घुसपैठ करते जाएंगे, तब हम राजनीति में घुसपैठ क्यों न करें? आप हमारे बुनियादी मूल्यों पर कुठाराघात कर रहे हैं और हम चुप रहें, यह हो नहीं सकता। अगर यह राजनीति है तो है।”

साहित्यकारों के विरोध के तरीके को सही ठहराते हुए वाजपेयी ने कहा, “चार सौ वैज्ञानिक, फिल्म जगत से जुड़े लोग और इतिहासकार सम्मान लौटा रहे हैं। इसका मतलब है कि जो हमने किया वह सही किया। यह सभी लोग अलग-अलग क्षेत्र से हैं, इनका एक दूसरे से कोई संपर्क नहीं है, इन्होंने मिल बैठकर तय नहीं किया है। इससे साफ है कि आज देश में हर क्षेत्र में अभिव्यक्ति पर संकट आया हुआ है और इसे महसूस किया जा रहा है।”

उन्होंने कहा, “कोई भी सत्ता साहित्यकारों, लेखकों, इतिहासकारों, फिल्मकारों व वैज्ञानिकों को कांग्रेसी या वामपंथी कहकर उनके बुनियादी प्रतिरोध को न तो दबा सकती है और न लांछित कर सकती है।”

सरकार द्वारा हत्याओं को ‘अभिव्यक्ति पर हमले’ की बजाय महज ‘घटनाएं’ करार दिए जाने के सवाल पर वाजपेयी का कहना है कि अभिव्यक्ति पर हमला सिर्फ लेखकों पर हमला थोड़े ही है, आप क्या खाएं क्या न खाएं, आप खाने से भी तो अभिव्यक्त करते हैं, क्या सोचें क्या न सोचें, क्या कहें क्या न कहें, यानी असहमति और विचार विभिन्नता के प्रति जो असहिष्णुता है, वह मूल में है। चेन्नई के छात्रों को खान-पान पर ही हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी कह दिया जाता है।

शायर मुनब्बर राना द्वारा पहले साहित्य सम्मान लौटाने और फिर प्रधानमंत्री के जूते तक उठाने की बात कहे जाने पर वाजपेयी ने कहा, “वैसे तो मैं उन्हें ज्यादा जानता नहीं, नाम सुना है..वे उर्दू के बड़े शायर हैं। उनके अपने अंतरविरोध हो सकते हैं, उनकी अपनी अवसरवादिता भी हो सकती है।”

वाजपेयी मध्यप्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी भी रहे हैं। उनके काल में भोपाल में गैस हादसा हुआ था और उसके बाद आयोजित एक कवि सम्मेलन को लेकर भाजपा उन पर हमले कर रही है। इस पर उनका कहना है, “हादसा दिसंबर 1984 में हुआ था और कवि सम्मेलन तीन माह बाद फरवरी में आयोजित किया गया था। यह भी बता दूं कि कविता कोई मनोरंजन नहीं है, जिसे स्थगित कर दिया जाए, वह तो गंभीर सांस्कृतिक और नैतिक कार्रवाई है, इस सम्मेलन में पर्यावरण को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी। वह एक तरह से गैस कांड का प्रतिरोध ही था।”

यह पूछे जाने पर कि साहित्यकारों और अन्य जगत से जुड़े लोगों का विरोध आखिर कब तक चलेगा, वाजपेयी ने कहा, “यह कैसे कोई कह सकता है, जब तक असहिष्णुता का माहौल खत्म नहीं होता, तब तक चलेगा।’

देश में अघोषित ‘आपातकाल’ : अशोक वाजपेयी Reviewed by on . भोपाल, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले चिंतक, विचारक और कवि अशोक वाजपेयी ने कहा है कि वर्ष 1975 में भोपाल, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले चिंतक, विचारक और कवि अशोक वाजपेयी ने कहा है कि वर्ष 1975 में Rating:
scroll to top