लंदन, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) ने एक भारतीय शल्य चिकित्सक को 2011 से काम से दूर रखने के लिए लगभग दस लाख पाउंड खर्च किए हैं।
मिरर द्वारा शनिवार को जारी रपट के मुताबिक, इंग्लैंड के स्टेफोर्डशायर में स्थित स्टेफोर्डशायर एनएसएस फाउंडेशन ट्रस्ट अस्पताल में यकृत शल्य चिकित्सक दित्या अग्रवाल को मरीजों की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर करने पर 2011 में पूरा वेतन देकर घर भेज दिया गया।
निलंबन के खिलाफ अग्रवाल द्वारा दायर शिकायत पर चली कानूनी लड़ाई में ट्रस्ट ने कम से कम 2,50,000 पाउंड खर्च किए और उसके चार वर्षो के वेतन और उसके स्थान पर की गई नियुक्ति पर भी ट्रस्ट को 7,00,000 पाउंड से अधिक खर्च करने पड़े।
अग्रवाल के मुताबिक, “मरीज की सुरक्षा और कामकाज के तरीके पर चिंता व्यक्त करना मेरे लिए एक दुस्वप्न साबित हुआ। मैं अपना नाम खराब नहीं करना चाहता।”
गौरतलब है कि जनवरी 2005 से मार्च 2009 के बीच अस्पताल में देखरेख की कमी के कारण मरीजों की उच्च मृत्यु दर पर उठे सवालों के बाद मीडिया ने इसे ‘मिड स्टाफ्स’ स्कैंडल के नाम से उजागर किया था। इसके बाद अस्पताल की कमियों की कई सार्वजनिक जांचें की गईं और इस ट्रस्ट का गठन किया गया था।
जनरल मेडिकल काउंसिल द्वारा पूर्ण अनुशासात्मक सुनवाई होने तक चिकित्सक के काम जारी रखने पर रोक लगाने के बाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने उसके पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन ट्रस्ट ने इस साल मई में अग्रवाल को उसके और उसके साथियों के बीच कामकाजी रिश्ते बिगड़ने के आरोप में पूर्ण रूप से निलंबित कर दिया था।
अग्रवाल ने अब ट्रस्ट के फैसले के खिलाफ यह कहते हुए याचिका दायर की है कि उसे अपनी बात रखने के कारण निलंबित किया गया है।
श्रम मंत्री लूसी पॉवेल और कंजर्वेटिव सांसद पीटर बॉटमली अग्रवाल के पक्ष में हैं।
ट्रस्ट के एक प्रवक्ता ने कहा, “ट्रस्ट अग्रवाल के दावों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है और इस पर अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है।”