नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने गुरुवार को कहा कि ‘देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले’ के खिलाफ खड़े होकर भारतीय लेखकों ने देश का गौरव बढ़ाया है।
माकपा के मुखपत्र ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ के संपादकीय में कई लेखकों द्वारा पुरस्कार लौटाए जाने का जिक्र करते हुए लिखा गया है, “लेखकों के विरोध प्रदर्शन में जो बात सबसे दिल को छूने वाली है वह है कि कितने अलग-अलग तरह के लेखक मुखालफत में खड़े हुए हैं।”
संपादकीय में लिखा गया है, “धर्मनिरपेक्षताऔर लोकतांत्रिक मूल्यों में गहरा विश्वास इन्हें एक-दूसरे से बांध रहा है। यह इस बात की बहुत साफ और साहसी अभिव्यक्ति है कि देश हिंदुत्व तानाशाही के आगे नहीं झुकेगा।”
लेखकों के विरोध में 30 अगस्त को लेखक एम.एम. कालबुर्गी की कर्नाटक में हुई हत्या के बाद से तेजी आई है।
कालबुर्गी की हत्या की तरफ इशारा करते हुए पीपुल्स डेमोक्रेसी में लिखा गया है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस भाषा में लिखते हैं या किस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। रचनाशील लेखकों ने साहित्य अकादमी के बेपरवाह और कायराना रुख के प्रति जोरदार विरोध जताया है जो अपने ही पुरस्कार प्राप्त लेखक और परिषद के पूर्व सदस्य की हत्या पर प्रतिक्रिया तक नहीं जता सकी।”
माकपा ने मुखपत्र में कहा है, “पुरस्कार लौटाकर, अकादमी के पदों को त्याग कर, इन लेखकों ने हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा देश के बहुलतावादी ताने-बाने और सांस्कृतिक विविधता पर हमले के खिलाफ आवाज बुलंद की है।”
संपादकीय में कहा गया है कि पुरस्कार लौटाने वाले लेखक केवल साहित्य अकादमी की कायराना चुप्पी का ही विरोध नहीं कर रहे हैं। इनका विरोध लेखकों और बुद्धिजीवियों पर हमलों के मामले में प्रधानमंत्री और सरकार की ‘चुप्पी’ पर भी है।