वृंदावन, 2 मई (आईएएनएस)| राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को नोटिस जारी कर पूछा है कि वृंदावन में अपशिष्ट भराव क्षेत्र के लिए जगहें क्यों नहीं मुहैया कराई गईं, ताकि यमुना के बाढ़ वाले डूब क्षेत्रों में कचरा फेंकने पर रोक लगाई जा सके।
एनजीटी ने 21 मई तक जवाब मांगा है
जिला मुख्यालयों पर जैसे ही नोटिस मिलने की खबर पहुंची, टनों घरेलू अपशिष्ट और कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निपटान के लिए अपशिष्ट भराव क्षेत्र की खोज के लिए कोशिशें तेज हो गईं।
याचिकाकर्ता मधुमंगल शुक्ला ने वृंदावन में अवैध और अनियंत्रित तरीके से कचरा फेंकने के कारण यमुना में नियमित तौर पर फैलाए जा रहे प्रदूषण की ओर न्यायाधिकरण का ध्यान खींचा।
यमुना नदी के बाढ़ वाले डूब क्षेत्र में आने वाले टाटिस्थान में इस समय जहां नगर का कचरा डंप किया जा रहा है, वह इतनी गंभीर अवस्था में पहुंच चुका है कि कई बार नदी वृंदावन में घाट से 300 से 400 मीटर दूर खिसक गई।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि महानगर ठोस कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम-2000 लागू न होने के कारण पूरे वृंदावन में पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, क्योंकि इस समय कचरे को नालियों में बहाया जा रहा है, जिसके कारण आए दिन नाली जाम की समस्या होती रहती है।
इसके अलावा कचरे को कम करने के लिए इसे जला दिया जाता है, जिसके कारण होने वाले वायु प्रदूषण से प्रभावित इलाका सांस लेने के लिए मुफीद नहीं है और खतरे वाला हो गया है।
शुक्ला ने कहा कि वृंदावन में 5,000 मंदिर हैं, जिनमें कुछ 1570 के आस-पास के हैं तथा इसके अलावा कई रमणीय घाट हैं और ये सभी यमुना नदी के किनारे हैं।
यमुना के कारण ही वृंदावन एक पवित्र नगरी मानी जाती है, हालांकि यमुना लंबे समय से अपनी यह ‘पवित्रता’ खोती जा रही है।
यमुना के बाढ़ वाले डूब क्षेत्र में अवैध निर्माण से यमुना पर खतरा बढ़ता जा रहा है।
वृंदावन के अलावा लगे हुए मथुरा शहर में भी उद्योगों से निकलने वाला दूषित जल और कचरा बिना संशोधित किए सीधे यमुना नदी में बहाया जा रहा है।