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 शरणार्थी संकट बीच पिसता बचपन | dharmpath.com

Wednesday , 18 June 2025

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शरणार्थी संकट बीच पिसता बचपन

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। बचपन इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है। यह उम्र का वह पड़ाव है, जहां बगैर किसी चिंता या तनाव के प्रत्येक इंसान अपनी जिंदगी का भरपूर आनंद लेता है। लेकिन प्यार-दुलार और नन्ही-नन्ही खुशियों से भरा बचपन कुछ बच्च्चों के नसीब में नहीं होता। क्यों?

नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। बचपन इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है। यह उम्र का वह पड़ाव है, जहां बगैर किसी चिंता या तनाव के प्रत्येक इंसान अपनी जिंदगी का भरपूर आनंद लेता है। लेकिन प्यार-दुलार और नन्ही-नन्ही खुशियों से भरा बचपन कुछ बच्च्चों के नसीब में नहीं होता। क्यों?

क्योंकि विपरीत परिस्थिति बचपन छीन लेती है। खासकर उन समुदायों के बच्चे, जिनके नाम के आगे ‘शरणार्थी’ जुड़ा होता है, वे असुरक्षा, उपेक्षा और अभाव में दिन गुजारते हुए अक्सर अपना बचपन खो देते हैं। वे शरणार्थी होने का दंश झेलने को विवश होते हैं, जबकि शरणार्थी शब्द का अर्थ तक शायद उन बच्चों को पता नहीं होता।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरे शरणार्थी संकट से भारत भी अछूता नहीं है। राजधानी दिल्ली, पश्चिम बंगाल, बिहार समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों में म्यांमार, तिब्बत, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान से आए हजारों शरणार्थी रह रहे हैं, जिन्हें न केवल स्थानीय लोगों बल्कि प्रशासन और सरकार द्वारा भी उपेक्षा झेलनी पड़ रही है, इसके बावजूद ये लोग यहां से जाने को तैयार नहीं हैं।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की सीमा से लगे पश्चिम म्यांमार के चिन राज्य से हजारों की संख्या में लोग सीमावर्ती भारतीय राज्य मिजोरम में रह रहे हैं।

वहीं अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के तौर पर देखा जाए तो ब्रिटेन की वेबसाइट ‘द टेलीग्राफ’ की 27 जुलाई को प्रकाशित रिपोर्ट ने इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) के अनुमानित आंकड़ों के हवाले से बताया कि इस साल भूमध्यसागर पार करने की कोशिश में 2,977 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से कम से कम 42 बच्चे थे।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल कल्याण के लिए काम करने वाले भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का कहना है, “इन बच्चों के लिए हर किसी को अपना दिल और दरवाजा खोलना चाहिए और किसी एक बच्चे को भी मरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।”

सत्यार्थी से जब पूछा गया कि क्या वह शरणार्थी संकट से जूझ रहे बच्चों के लिए कोई कार्य कर रहे हैं, तो उन्होंने बताया, “मैं इन बच्चों का बचपन बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा हूं। मैंने तुर्की और जर्मनी के शरणार्थी शिविरों में रहकर शरणार्थियों और उनके बच्चों के दर्द को महसूस किया था, मैंने उन बच्चों की आंखों में सब कुछ खोने के बाद भी सपने देखे हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “मैंने कई राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों के समक्ष भी इस मुद्दे को उठाते हुए बच्चों के लिए सभी देशों से अपने द्वारा खोलने का आग्रह किया। मैंने ऑस्ट्रिया के कई सांसदों और नेताओं के समक्ष कहा था- ‘देयर एवरी सिंगल बॉर्डर, एवरी सिंगल पॉकेट एंड एवरी सिंगल हार्ट शुड रीमेन ओपन फॉर रिफ्यूजी चिल्ड्रन बीकॉज देयर ऑल अवर चिल्ड्रन’।

पिछले साल सितंबर में तुर्की के तट पर पर हुए हादसे में तीन साल के बच्चे अयलान कुर्दी की मौत और उसकी तस्वीर ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। अयलान की मौत समुद्र में डूबने से हुई थी, लेकिन हकीकत यह है कि उसकी मौत की असली वजह यह थी कि उसके नाम के आगे ‘शरणार्थी’ लगा हुआ था।

हकीकत में शरणार्थी वे हैं, जिनका कोई ठिकाना नहीं। अयलान की मौत के साथ अखबार, टेलीविजन चैनल और सोशल मीडिया के साथ ही पूरी दुनिया शरणार्थियों के दर्द से वाकिफ हुई थी।

अयलान की मौत के बाद बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथोनी लेक ने कहा था, “हम निर्दोष नन्ही जानों को त्रासदी और कठिन परिस्थतियों से बचाने में असफल रहे हैं। हमें मिलकर कोई ऐसा रास्ता तलाशना चाहिए, जिससे किसी परिवार को अपने बच्चों के साथ समुद्र पार करने के लिए नाव का सहारा न लेना पड़े।”

अपना देश और घर-बार छोड़कर यह लोग शरण पाने के लिए मजबूरन दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं। जान हथेली पर रखकर सीमाएं और समुद्र को पार करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर इन शरणार्थियों की बढ़ती संख्या को देख शरण देने वाले देश भी मजबूर हैं। कोई भी देश इस मानव संकट के बीच मसीहा बनने में असमर्थ है।

यूरोपीय देशों, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, नार्वे, स्वीडन कई देश शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे बंद कर रहे हैं। इस मानव संकट की एक वजह नहीं है और इसीलिए कोई एक देश इस समस्या का हल नहीं निकाल सकता। इसके लिए समूचे देशों को एक साथ आना होगा और एकजुट होकर इन शरणार्थियों के लिए मदद का हाथ बढ़ाना होगा।

सीरिया, सोमालिया, माली, कुर्दिस्तान, इराक और अफगानिस्तान जैसे कई देश गृहयुद्ध और आतंकवाद से जूझ रहे हैं। पक्ष और विपक्ष के बीच की इस तकरार के बीच पिसते बचपन को बगैर किसी कसूर के सजा मिल रही है। इस पर पूरी दुनिया बड़े शौक से चर्चा करती है और फिर भूल जाती है।

लेकिन इस दर्द को झेल रहे हैं वे मासूम बच्चे, जिनकी उम्र खेलने, पढ़ने और सपने देखने की है। लेकिन शायद बचपन की इन छोटी-छोटी चीजों पर इन बच्चों का अधिकार नहीं है, क्योंकि इनके नाम के आगे जुड़ा है ‘शरणार्थी’।

शरणार्थी संकट बीच पिसता बचपन Reviewed by on . नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। बचपन इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है। यह उम्र का वह पड़ाव है, जहां बगैर किसी चिंता या तनाव के प्रत्येक इंसान अपनी ज नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। बचपन इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत पड़ाव होता है। यह उम्र का वह पड़ाव है, जहां बगैर किसी चिंता या तनाव के प्रत्येक इंसान अपनी ज Rating:
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