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 सूखे बुंदेलखंड में भूखों के लिए ‘सामुदायिक रसोई’ (फोटो सहित) | dharmpath.com

Tuesday , 10 June 2025

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सूखे बुंदेलखंड में भूखों के लिए ‘सामुदायिक रसोई’ (फोटो सहित)

ललितपुर, 22 जनवरी (आईएएनएस)। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के भूखे लोगों को पेट भरने के लिए अनाज का जुगाड़ करना आसान नहीं है। विषम हालात से जूझते लोगों की मदद के लिए समाज के विभिन्न वर्ग सामने आ रहे हैं। ललितपुर जिले के कड़ेसरा खुर्द गांव में एक अभिनव प्रयोग हुआ है, यहां ‘सामुदायिक रसोई’ (कम्युनिटी किचन) शुरू की गई है, जो भूखों का पेट भर रही है।

ललितपुर, 22 जनवरी (आईएएनएस)। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के भूखे लोगों को पेट भरने के लिए अनाज का जुगाड़ करना आसान नहीं है। विषम हालात से जूझते लोगों की मदद के लिए समाज के विभिन्न वर्ग सामने आ रहे हैं। ललितपुर जिले के कड़ेसरा खुर्द गांव में एक अभिनव प्रयोग हुआ है, यहां ‘सामुदायिक रसोई’ (कम्युनिटी किचन) शुरू की गई है, जो भूखों का पेट भर रही है।

कड़ेसरा खुर्द गांव की दलित-आदिवासी बस्ती में सुबह 10 बजे और रात को आठ बजे ऐसे लगता है, जैसे कोई आयोजन चल रहा हो, क्योंकि यहां हर रोज दोनों समय 30 से ज्यादा लोग एक साथ भोजन करते नजर आते हैं। ये वे लोग है जिन्हें भोजन आसानी से नहीं मिल पा रहा है।

ऐसा संभव हो पा रहा है ‘सामुदायिक रसोई’ के जरिए। इस रसोई का संचालन गांव के लोग कर रहे हैं और आर्थिक मदद दी है भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरू के प्राध्यापक त्रिलोचन शास्त्री ने।

सूखे के हालात ने इस इलाके के गरीबों की जिंदगी को समस्याओं से भर दिया है, क्योंकि एक तरफ उनके खेतों में पैदावार नहीं हुई है और काम का संकट है। इतना ही नहीं, जाड़े के मौसम में वे अपने और बच्चों की सुरक्षा के लिए गर्म कपड़े तक नहीं खरीद पा रहे हैं।

ऐसा ही एक गांव तालबेहट कस्बे का कड़ेसरा खुर्द है, जहां के दलित व आदिवासी परिवारों के लिए दाल, सब्जी के बगैर ही भोजन पूरा हो जाता था, मगर गांव के ही कुछ लोगों ने समाजसेवी संस्था ‘परमार्थ’ की देखरेख में मकर संक्रांति के दिन ‘सामुदायिक रसोई’ शुरू की।

गांव के राकेश बताते हैं कि द्वारका सहरिया के घर पर सामुदायिक रसोई का संचालन किया जा रहा है। इस सामुदायिक रसोई में आदिवासी दलित समाज के 32 लोग भोजन करते हैं। इनमें से अधिकांश वृद्ध और असहाय लोग हैं।

इस सामुदायिक रसोई से भोजन में सब्जी, दाल, रोटी, कढ़ी और चावल दिया जा रहा है। सामुदायिक रसोई को चलाने के लिए गांव के पांच सदस्यों- मनोहर, राकेश, सरनाम, द्वारका व महेश की समिति बनाई गई है। इसके अलावा गोपी, सुभद्रा, माया, लक्ष्मी सहरिया, रती ने भोजन पकाने की सामूहिक जिम्मेदारी ली है।

गांव के राकेश सहरिया का कहना है कि उनके गांव में भुखमरी के हालात बन गए थे, ऐसे में आदिवासी वर्ग के लोगों के लिए सामुदायिक रसोई वरदान बनकर आई है। बुजुर्ग और महिलाओं के लिए इस रसोई ने राहत दी है।

गांव के लोग बताते हैं कि सुबह 10 बजे और रात को आठ बजे भोजन तैयार हो जाता है। सबसे पहले बुजुर्गो और बच्चों को भोजन दिया जाता है। इसके बाद युवा भोजन करते हैं। सामुदायिक रसोई में भोजन मिल जाने से आदिवासी परिवार दिन में कहीं मजदूरी का इंतजाम कर लेते हैं। सामुदायिक रसोई में भोजन करने अधिकांश वे बुजुर्ग आते हैं, जिनके बच्चे रोजगार की तलाश में घर छोड़कर शहरों में चले गए हैं।

बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में फैला हुआ है। इस इलाके में बीते चार वर्षो से लगातार सूखा पड़ रहा है। इसके चलते इंसान और जनवर दोनों के लिए दाने का जुगाड़ मुश्किल हो गया है। खेत सूखे पड़े हैं, जलस्रोत भी सूख चले हैं। इस स्थिति में हर कोई सरकार और समाज की ओर निहार रहा है। कई समाजसेवी अपना धर्म निभाने आगे आ भी रहे हैं।

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