शिमला, 15 मई (आईएएनएस)| हिमाचल प्रदेश के काले और लाल चेरी का उत्पादन इस साल 250 टन रहा है, जो इसके 400 टन के सामान्य पैदावार से कम है, लेकिन पिछले साल के 202 टन की उपज की तुलना में इसमें सुधार हुआ है।
राज्य बागवानी विभाग के विशेषज्ञ एस.एस.वर्मा के मुताबिक, “इस साल चेरी के सामान्य से कम उत्पादन का हमारा अनुमान है। चेरी का कुल उत्पादन लगभग 250 टन के आसपास रहेगा।”
उन्होंने कहा कि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों की वजह से ऊपरी स्थानों पर बागानों में चेरी फसलों के नष्ट होने की खबर है। विशेष रूप से मार्च अंत से अप्रैल के पहले सप्ताह के दौरान अत्यधिक ठंड की वजह से उत्पादन नष्ट हुआ है।
वैकल्पिक फल फसल के रूप में 453 हेक्टेयर क्षेत्र में कम से कम 10,000 छोटे किसान 20 से अधिक किस्मों की बागवानी कर रहे हैं।
मौजूदा समय में चेरी की कटाई जोरों पर है और यह जून के अंत तक जारी रहेगी।
शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा और किन्नौर के ऊपरी स्थानों, यानी समुद्र तल से 6,000 से 8,0000 फुट ऊंचाई वाले स्थानों पर चेरी की खेती करना उपयुक्त है।
कोटगढ़ के फल उत्पादक विनोद कुमार का कहना है कि अत्यधिक ठंड की वजह से चेरी की तुलना में बादाम और अखरोट को अधिक क्षति पहुंची है।
एक अन्य उत्पादक गोपाल मेहता ने आईएएनएस को बताया कि इस मौसम में कीटनाशकों की वजह से फसलों को अधिक नुकसान पहुंचा है। जिन किसानों ने कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव किए, वे अपनी फसलों को बचाने में सफल रहे हैं।
मेहता ने कहा, “इन दिनों दिल्ली के आजादपुर थोक फल मंडी में चेरी की कीमत लगभग 100 रुपये प्रति किलोग्राम है। उत्तम गुणवत्ता की चेरी की कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम तक है।”
उन्होंने कहा कि अगले सप्ताह चेरी की सर्वोत्तम किस्मों ‘ब्लैक हार्ट’, ‘बिंग’ और ‘देउरो नेरा’ की फसल बढ़ेगी।
मुख्य रूप से चेरी का उत्पादन शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में होता है। शिमला में चेरी का अकेले राज्य के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक उत्पादन होता है।