हैदाराबाद, 20 जनवरी (आईएएनएस)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय मामले में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से दखल देने की अपील की।
हैदाराबाद, 20 जनवरी (आईएएनएस)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय मामले में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से दखल देने की अपील की।
विश्वविद्यालय में दलित शोध छात्र रोहित वेमुला ने निलंबन और कथित सामाजिक बहिष्कार से परेशान होकर खुदकुशी कर ली थी।
येचुरी ने परिसर में छात्रों को संबोधित किया। इसके बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह इस मामले में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिलेंगे जो कि विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष हैं। वह राष्ट्रपति से मामले में दखल देने का आग्रह करेंगे।
येचुरी ने कहा कि बीते कुछ सालों में हैदराबाद विश्वविद्यालय में 12 दलित छात्र खुदकुशी कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “हम राष्ट्रपति से मिलेंगे और उनसे पूछेंगे कि किस आधार पर उन्होंने बीते साल हैदराबाद विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय का पुरस्कार दिया था जबकि यहां ये सब हो रहा है।”
माकपा की राज्यसभा सांसद और हैदराबाद यूनिवर्सिटी कोर्ट की सदस्य सीमा ने इस बारे में पहले ही राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि कुलपति अप्पाराव को हटाने के लिए तुरंत विश्वविद्यालय कोर्ट की बैठक बुलाई जाए।
सीमा ने लिखा है कि उनके लिए नैतिक रूप से संभव नहीं होगा कि कुलपति को हटाने के लिए कोर्ट की आपात बैठक न बुलाने के बावजूद वह कोर्ट की सदस्य बनी रहें।
इससे पहले विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए येचुरी ने कहा केंद्रीय मंत्रियों बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी तथा कुलपति अप्पाराव को हटाया जाए क्योंकि ये तीनों आपराधिक साजिश का हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा कि कुलपति ने पांच दलित छात्रों को निलंबित करने और उनका सामाजिक बहिष्कार सुनिश्चित करने के लिए जांच को दोबारा शुरू किया। ऐसा पहले कभी किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय में नहीं हुआ।
येचुरी ने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जांच आंख में धूल झोंकने के समान है। इस मामले की निष्पक्ष जांच, या तो सीबीआई या न्यायिक जांच, होनी चाहिए।
उन्होंने रोहित की खुदकुशी को साजिश के तहत हत्या बताया। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालयों को ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा का समर्थन करने और इसे आगे बढ़ाने के लिए किए जा रहे वृहत्तर प्रयासों का नतीजा है। यह असहिष्णुता का हिस्सा है जो कि खुद ही भारत को धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र से असहिष्णु और फासीवादी हिंदू राष्ट्र बनाने के व्यापक मुद्दे का हिस्सा है।