Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the js_composer domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
 भारत में अभिव्यक्ति की आजादी | dharmpath.com

Tuesday , 17 June 2025

Home » ब्लॉग से » भारत में अभिव्यक्ति की आजादी

भारत में अभिव्यक्ति की आजादी

January 9, 2015 3:14 pm by: Category: ब्लॉग से Comments Off on भारत में अभिव्यक्ति की आजादी A+ / A-

indexआलोचना और व्यंग्य पर भारत में भी असहिष्णुता बढ़ रही है. मीडिया दफ्तरों या सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर हमले रुके नहीं हैं लेकिन कुलदीप कुमार का कहना है कि लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र मीडिया के महत्व का एहसास पत्रकारों को है.

फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दॉ पर हुए आतंकवादी हमले की दुनिया भर में कड़ी भर्त्सना हुई है. भारत में भी समाज के विभिन्न वर्गों ने इस जघन्य हत्याकांड पर पर तीखी प्रतिक्रिया की है और पत्रकार इसमें सबसे आगे रहे हैं. कई कार्टूनिस्टों ने अखबारों में लेख लिख कर इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और मीडिया संगठनों ने एकजुट होकर अपना विरोध प्रकट किया है. इसके साथ ही यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि स्वयं भारत में मीडिया को अभिव्यक्ति की कितनी आजादी मिली हुई है, यहां उसे किस किस्म के विरोध, दबाव या हमलों का सामना करना पड़ता है, और इसमें वह कितना सफल होता है.

फ्रांस की तरह भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को असीमित नहीं माना जाता. उसके संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कारण देश की संप्रभुता एवं अखंडता, देश की सुरक्षा, मित्र देशों के साथ संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता एवं नैतिकता या किसी व्यक्ति के मान-सम्मान पर आंच आती हो, अदालत की मानहानि होती हो या किसी अपराध के लिए उकसाया जाता हो, तब उस पर “विवेकसम्मत प्रतिबंध” लगाए जा सकते हैं. इस संवैधानिक प्रावधान की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर राज्य, संगठनों एवं व्यक्तियों द्वारा हमले किए जाते रहे हैं और आज भी जारी हैं. इन हमलों का शिकार लेखक, इतिहासकार, पत्रकार, चित्रकार, कार्टूनिस्ट, फ़िल्मकार और उनकी कृतियां होते हैं. अदालतों में मानहानि के मुकदमे दायर करके परेशान करना आम बात है. आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के प्रयासों में वृद्धि हुई है और मीडिया पर कम से कम 85 हमले किए गए हैं. यह आंकड़ा इसलिए भी सामने आ सका है क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने इस वर्ष से मीडिया पर हमलों पर अलग से आंकड़े इकट्ठा करना शुरू किया है. पांच मीडिया संस्थानों के खिलाफ मानहानि के मुकदमे दायर किए गए. मीडिया के खिलाफ मुकदमा चलाने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार एवं भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी शामिल थे. पत्रकारों पर जानलेवा हमले भी होते रहे हैं. गनीमत सिर्फ यह थी कि जहां वर्ष 2013 में आठ पत्रकारों की उन पर हुए हमलों के कारण मृत्यु हुई थी, वहीं 2014 में हमलों के कारण मरने वाले पत्रकारों की संख्या दो थी.

अक्सर अखबारों, पत्रिकाओं और टीवी समाचार चैनलों के दफ्तरों पर उत्तेजित भीड़ द्वारा हमले किए जाते हैं. अक्सर इनके पीछे धार्मिक या सामुदायिक भावनाएं आहत होने का बहाना होता है. कला प्रदर्शनियों में तोड़-फोड़ मचाना और किताबों को जलाना एक आम बात हो गई है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी तो यहां तक कह चुके हैं कि वामपंथी इतिहासकारों की किताबें जला देनी चाहिए.

पत्रकार और उनके संगठन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने में बहुत जागरूक हैं. लेकिन एक स्थिति में वे बेबस हो जाते हैं. यह स्थिति तब आती है जब उन्हें अपने संस्थान के भीतर ही मालिक या प्रबंधन की ओर से बंदिशों का सामना करना पड़ता है. अखबार, पत्रिकाएं और टीवी समाचार चैनल अंततः व्यवसाय हैं और उनका स्वामित्व पत्रकारों के हाथ में नहीं होता. अपने व्यावसायिक हितों की सिद्धि के लिए कई बार मालिक और प्रबंधन पत्रकारों पर किसी नेता या दलविशेष के पक्ष में या खिलाफ लिखने के लिए दबाव डाल सकता है. उस समय पत्रकार के सामने केवल यही विकल्प होता है कि वह या तो निर्देश माने या नौकरी छोड़ दे. अक्सर पत्रकार दूसरा विकल्प चुनते हैं, लेकिन कुछ ऐसा नहीं भी कर पाते.

लेकिन जहां तक धार्मिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक संगठनों की ओर से आने वाले दबाव, धमकियों या हिंसक हमलों का सवाल है, पत्रकारों ने लगभग हमेशा उनका जबर्दस्त विरोध किया है और आज भी यह विरोध जारी है. शार्ली एब्दॉ पर हुए आतंकवादी हमले के खिलाफ भी भारत के विभिन्न शहरों में पत्रकार एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है, इस बात का एहसास पत्रकारों को बखूबी है, और वे इस स्वतंत्रता को बरकरार रखने के लिए संघर्ष करने को तैयार हैं.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

भारत में अभिव्यक्ति की आजादी Reviewed by on . आलोचना और व्यंग्य पर भारत में भी असहिष्णुता बढ़ रही है. मीडिया दफ्तरों या सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर हमले रुके नहीं हैं लेकिन कुलदीप कुमार का कहना है कि लोकतंत्र आलोचना और व्यंग्य पर भारत में भी असहिष्णुता बढ़ रही है. मीडिया दफ्तरों या सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर हमले रुके नहीं हैं लेकिन कुलदीप कुमार का कहना है कि लोकतंत्र Rating: 0
scroll to top