नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय से उसकी एक याचिका की सुनवाई के लिए एक संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया। याचिका में विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के तहत लाभ देने के लिए तथा बैंकिंग एवं वित्तीय लेन-देन में आधार के उपयोग को अनुमति देने का अनुरोध किया गया है।
महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश एच.एल. दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ से 11 अगस्त के आदेश के स्पष्टीकरण/संशोधन से संबंधित उनकी याचिका की सुनवाई के लिए वृहद पीठ गठित करने का अनुरोध किया, जिस पर अदालत ने कहा कि इतनी जल्दी सुनवाई के लिए बड़ी पीठ का गठन कर पाना काफी कठिन होगा।
प्रधान न्यायाधीश दत्तू ने कहा कि सुनवाई के लिए नौ न्यायाधीशों की पीठ गठित कर पाना कठिन होगा, क्योंकि इससे अन्य अदालतों की कार्यवाही बाधित होगी।
इसके बाद उन्होंने कहा कि वह शुक्रवार शाम याचिका पर गौर करेंगे।
बुधवार को न्यायामूर्ति जे. चेलामेस्वर, न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े और न्यायमूर्ति सी. नगप्पन ने 11 अगस्त के अंतरिम आदेश में ढील देने से इंकार करते हुए सरकार और अन्य एजेंसियों के कई आवेदनों को वृहद पीठ के हवाले कर दिया था, जिसमें स्वैच्छिक आधार पर आधार के उपयोग की मांग की गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ जनवितरण प्रणाली के तहत अनाजों के वितरण और किरासन तेल तथा रसोई गैस की आपूर्ति में ही आधार कार्ड के उपयोग की अनुमति दी है।
11 अगस्त के आदेश में अदालत ने यह सवाल वृहद पीठ के हवाले किया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी तथा अन्य द्वारा दाखिल की गई याचिकाओं पर यह सवाल वृहद पीठ के हवाले किया गया था।
न्यायमूर्ति केएस पुट्टास्वामी ने कहा था कि आधार कार्ड देने के लिए बायोमेट्रिक आंकड़े और आंख की पुतली का स्कैन इकट्ठा करना नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि व्यक्तिगत आंकड़े पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं और उनका दुरुपयोग हो सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 में और 1964 में फैसला दिया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन 1975 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया था।