नई दिल्ली, 22 दिसंबर (आईएएनएस)। राज्यसभा में महत्वपूर्ण विधेयकों को तत्काल पेश करने को लेकर सदस्यों के बीच सहमति बनने के एक दिन बाद मंगलवार को किशोर न्याय संशोधन विधेयक को पारित कर दिया गया।
विधेयक के पारित होने के पहले इसे सदन की प्रवर समिति को भेजने की मांग करते हुए वाम दलों ने हालांकि सदन से बहिर्गमन किया।
सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता निर्भया (23) की मां आशा देवी व पिता बद्रीनाथ सिंह विधेयक पर चर्चा के वक्त राज्यसभा की दर्शक दीर्घा में मौजूद थे। निर्भया के साथ 16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में एक चलती बस में पांच लोगों ने बर्बरतापूर्वक सामूहिक दुष्कर्म को अंजाम दिया था।
किशोर न्याय विधेयक (बाल देखरेख एवं संरक्षण), 2014 में जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 साल के किशोर-किशोरियों पर भी वयस्कों के समान ही मुकदमा चलाने का प्रावधान है। इसके अलावा कम संगीन अपराध में संलिप्त पाए जाने पर 16 से 18 साल के उन किशोर-किशोरियों से वयस्कों के समान ही बर्ताव करने का प्रावधान है, जैसा 21 साल की उम्र के बाद गिरफ्तार किए जाने वाले अपराधी से किया जाता है।
इससे पहले, निर्भया के माता-पिता ने मंगलवार को केंद्रीय संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से मुलाकात कर विधेयक को संसद से जल्द से जल्द पारित कराने का आग्रह किया था।
विधेयक के बारे में विस्तृत विवरण देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि प्रस्तावित कानून के तहत ही बाल सुधार गृह की स्थापना की जाएगी।
मेनका ने कहा, “वे (किशोर दोषी) वयस्कों के लिए बने जेल में वयस्क अपराधियों के साथ नहीं रहेंगे। उन्हें बाल सुधार गृह में रखा जाएगा। वर्तमान में ऐसा नहीं है। इसकी स्थापना की जाएगी।”
दोषी किशोर तब तक बाल सुधार गृह में रहेंगे, जब तक कि उनकी उम्र 21 वर्ष नहीं हो जाती, जिसके बाद इस बात का मूल्यांकन किया जाएगा कि उन्हें रिहा किया जाए या नहीं।
मंत्री ने कहा, “उनकी समीक्षा होगी। यदि अब भी उनका झुकाव अपराध की ओर है, तो उन्हें पूरी सजा काटनी होगी।”
मेनका ने कहा कि मौजूदा कानून से किशोर अपराध को बढ़ावा मिलता है।
उन्होंने कहा, “अपराध में किशोर-किशोरियों की संलिप्तता तेजी से बढ़ रही है। बच्चे पुलिस थाने में पहुंचकर कहते हैं कि उन्होंने हत्या की है। हमें किशोर न्याय (बोर्ड) भेजा जाए।”
बच्चों के खिलाफ बच्चों के अपराध की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने आश्चर्य जताया, “क्या हम दोषी या अपराधी को बचाने जा रहे हैं?”
मेनका ने कहा, “यह (विधेयक) 16 वर्ष के एक किशोर को यह कहने से रोकेगा कि उसने झुग्गी में आग लगाई है और मुझे किशोर न्याय (बोर्ड) भेजा जाए। या मैंने दुष्कर्म किया है, हत्या की है, मुझे किशोर न्याय (बोर्ड) के समक्ष पेश किया जाए।”
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि दोषी किशोरों को जेल में कुख्यात अपराधियों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए और उनके लिए अलग जगह होनी चाहिए।
संसदीय कार्य मंत्री एम.वेंकैया नायडू ने इसी बीच कहा कि सरकार ने इस विधेयक को कई बार सूचीबद्ध किया, लेकिन इसे पेश नहीं किया जा सका।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) व द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने विधेयक को पारित करने की जल्दबाजी पर सवाल उठाए और इसे प्रवर समिति के पास भेजने का सुझाव दिया।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सीताराम येचुरी ने इसे भावनात्मक कदम करार दिया।
उन्होंने कहा, “कल अगर 15 साल 11 महीने का कोई किशोर एक अपराध करता है, तो क्या आप परिभाषा को फिर से बदल देंगे? आज इस्लामिक स्टेट (आईएस) 14-15 वर्ष के किशोरों को भर्ती कर रहा है। क्या हम उम्र को 18 से 16 से 14 साल करने जा रहे हैं?”
सदन के उपाध्यक्ष पी.जे. कुरियन ने हालांकि कहा कि विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का कोई प्रस्ताव सामने नहीं आया है, जिसके बाद वाम दलों ने सदन से बहिर्गमन किया।
इसके बाद विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले में दोषी किशोर (अब बालिग) की सुधार गृह में तीन साल की अवधि पूरी हो चुकी है।