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 केरल : राजनीति में महिलाओं की बढ़ रही भागीदारी, कम हो रही सफलता | dharmpath.com

Friday , 2 May 2025

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केरल : राजनीति में महिलाओं की बढ़ रही भागीदारी, कम हो रही सफलता

तिरुवनंतपुरम, 2 अगस्त (आईएएनएस)। केरल में बीते दो दशकों में महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, अनेक आंदोलनों का नेतृत्व महिलाओं ने किया है, मतदान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और राजनीति में पदार्पण करने वाली महिलाओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि केरल में सीधे तौर चुनी जाने वाली महिला विधायकों की संख्या में लगातार गिरावट आई है।

तिरुवनंतपुरम, 2 अगस्त (आईएएनएस)। केरल में बीते दो दशकों में महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, अनेक आंदोलनों का नेतृत्व महिलाओं ने किया है, मतदान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और राजनीति में पदार्पण करने वाली महिलाओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि केरल में सीधे तौर चुनी जाने वाली महिला विधायकों की संख्या में लगातार गिरावट आई है।

इंडिया स्पेंड ने चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण कर इस रोचक तथ्य का खुलासा किया।

विधानसभा में महिला विधायकों का प्रतिशत साल 1996 के 10.23 प्रतिशत से गिरकर साल 2016 में 6.06 हो गया। हालांकि महिला उम्मीदवारों की संख्या बीते पांच विधानसभा चुनावों में दोगुनी हो गई है।

पुरुष प्रधान देश में केरल विधानसभा चुनाव-2016 से मिले ये आंकड़े काफी मायने रखते हैं। केरल विधानसभा चुनाव-2016 में कुल 105 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से एक तिहाई महिला प्रत्याशी निर्दलीय थीं, जो इनके आगे बढ़ने की प्रतिबद्धता को दिखाता है।

गौरतलब है कि केरल विधानसभा चुनाव-2011 में महिला प्रत्याशियों की कुल संख्या 83 थी।

राज्य में पांच वर्ष के अंतराल के बाद वाम लोकतांत्रिक मोर्चा ने सत्ता में वापसी की है, हालांकि विधानसभा के कुल 140 चयनित सदस्यों में इस बार महिला सदस्यों में सिर्फ एक संख्या का इजाफा हुआ है।

केरल विधानसभा में इस समय कुल आठ चयनित महिला सदस्य हैं।

2016 के चुनाव में 78 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया, जबकि 2011 में यह 75 प्रतिशत था। पुरुष मतदान प्रतिशत साल 2016 में 76 प्रतिशत रहा।

आईआईटी मद्रास की मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग में वैकासिक अध्ययन की प्राध्यापिका बिनीथा थांपी के अनुसार, “यह समय महिला राजनीति (स्त्री राष्ट्रीयम) को बढ़ावा देने का है, जिससे व्यावहारिक तौर पर लैंगिक भेदभाव को दूर करने में मदद मिलेगी।”

भारत में महिलाओं की बंधनमुक्ति में सबसे बड़ी बाधा पारंपरिक रूप से विपरीत परिस्थितियां हैं।

साल 2014 में महिलाओं के नेतृत्व में हुए निलपु समरम (स्थायी आंदोलन) आंदोलन में मांग उठाई गई थी कि सरकार अनुसूचित जनजातियों के भूमि अधिकारों को लागू करे, जिससे स्थानीय समुदाय वन भूमि का इस्तेमाल कर सके और पुलिस की ज्यादतियों पर अंकुश लग सके।

मुन्नार के चाय बागानों में साल 2015 में महिलाओं के नेतृत्व में एक और आंदोलन ‘पिमबिलाई ओरुमनि’ (महिला एकता) हुआ, जिस दौरान चाय बागानों के श्रमिकों के लिए अधिक भत्तों और सुविधाओं की मांग की गई।

सार्वजनिक तौर पर यह आत्मविश्वास केरल की महिलाओं की स्थिति और मुक्ति को प्रदर्शित करता है। उल्लेखनीय है कि केरल में महिला साक्षरता (92 प्रतिशत) सबसे अधिक है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर औसत महिला साक्षरता दर 65 प्रतिशत ही है। केरल में महिलाएं देश में सबसे कम बच्चे (1.77 बच्चे प्रति महिला) पैदा करती हैं, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 2.5 बच्चे प्रति महिला है। वहीं श्रम योगदान में इनका प्रतिशत राष्ट्रीय स्तर (25 प्रतिशत) से कम (18 प्रतिशत) है।

केरल विधानसभा चुनाव-2016 में चुनाव हारने वाली कुछ महिला उम्मीदवारों में सी. के. जानु (अनुसूचित जनजाति नेता), पी, के. जयालक्ष्मी (पूर्व सरकार में अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री) शामिल हैं।

जानु ने कहा, “महिला मतदाताओं को महिला उम्मीदवारों पर विश्वास करना चाहिए। यह विश्वास अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “मतदाताओं को चिंता रहती है कि क्या महिला उम्मीदवार उनकी मांगों को पूरा कर पाएंगी, क्योंकि उन्हें घर की जिम्मेदारियों से आसानी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। ऐसे कई मामले हैं, जिसमें चुनी गई महिला प्रतिनिधियों के पति उनकी जगह फैसले ले रहे हैं।”

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