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 मप्र में जीत की आदी भाजपा को मिला हार का स्वाद (सिंहावलोकन-2015) | dharmpath.com

Monday , 9 June 2025

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मप्र में जीत की आदी भाजपा को मिला हार का स्वाद (सिंहावलोकन-2015)

भोपाल, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में लगातार जीत की आदी हो चुकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को गुजरता हुआ यह साल रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में हार का स्वाद दे गया। गुजरे एक दशक में भाजपा के खाते में आई यह सबसे बड़ी और मनोबल गिराने वाली हार मानी जा रही है।

भोपाल, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में लगातार जीत की आदी हो चुकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को गुजरता हुआ यह साल रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में हार का स्वाद दे गया। गुजरे एक दशक में भाजपा के खाते में आई यह सबसे बड़ी और मनोबल गिराने वाली हार मानी जा रही है।

विगत 12 वर्षो से राज्य की सियासत पूरी तरह भाजपा के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है, यही कारण है कि इस दौरान हुए तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को करारी मात दी और उसे राज्य की 230 सीटों में से 100 का आंकड़ा तक छूने का मौका नहीं दिया। वहीं बीते लोकसभा चुनाव में भी 29 में से सिर्फ दो ही सीटें कांग्रेस के खाते में आई थीं। छिंदवाड़ा से कमलनाथ और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया ही जीत हासिल करने में कामयाब हो सके।

राज्य में नगरीय निकाय से लेकर गैर दलीय आधार पर होने वाले पंचायतों के चुनाव में भी भाजपा समर्थकों का बोलबाला है, लोकसभा और विधानसभा में भाजपा की ताकत किसी से छुपी नहीं है। इसलिए अब हर एक चुनाव में भाजपा संगठन से लेकर कार्यकर्ता तक अपनी जीत तय मानकर चलते हैं, यह भी सत्य है कि सत्ता और संगठन से जुड़े लोग चुनाव जीतने के लिए हर दांव आजमाते हैं, कोई कसर नहीं छोड़ते।

इस साल के अंत में हुए रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है। यह सीट दिलीप सिंह भूरिया के निधन पर खाली हुई थी और उपचुनाव हुआ था। भाजपा ने दिलीप सिंह की बेटी और विधायक निर्मला भूरिया को उम्मीदवार बनाकर ‘सिम्पैथी वोट’ हासिल करने की कोशिश की।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस संसदीय क्षेत्र में कई दिनों तक डेरा डाले रहे और धुआंधार सभाएं व रोड शो किए, मगर खार खाई जनता ने उनके गले में हार की हार पहना दी। यहां से कांग्रेस के पूर्व मंत्री कांतिलाल भूरिया जीते।

यह उपचुनाव भाजपा के लिए कई मायनों में अहम था, क्योंकि ‘मोदी लहर’ के चलते आजादी के बाद पहली बार भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर दिलीप सिंह भूरिया इस संसदीय क्षेत्र से जीते थे। मगर देश और प्रदेश की सत्ता पर भाजपा के काबिज रहने के बावजूद पार्टी यह सीट गंवा बैठी। केंद्र की सत्ता में आने के बाद लोकसभा का यह पहला उपचुनाव था। सबकी नजर इस सीट पर थी, और भाजपा इसे हर हाल में जीतना चाहती थी, मगर मंसूबा पूरा हो न सका।

सच तो यह है कि इस उपचुनाव की हार को भाजपा भी आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री चौहान से लेकर पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान तक इस हार को भूल नहीं पा रहे हैं। कारण बताते समय डेढ़ साल पहले मिली जीत को भूलकर कहते हैं, ‘यह जनजातीय बहुल सीट है और यहां हमेशा से कांग्रेस जीतती आई है।’

लोकसभा उपचुनाव में मिली हार भाजपा के लिए किसी ‘सबक’ से कम नहीं है। यही कारण है कि वह आगामी समय में होने वाले मैहर विधानसभा उपचुनाव को लेकर पार्टी काफी गंभीर है, और ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे किसी तरह का नुकसान उठाना पड़े।

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