भोपाल, 9 जुलाई (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले को उजागर हुए दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। लेकिन जांच पूरी होना अभी बाकी है। सच से पर्दा उठना एक अंतहीन गाथा बन चला है।
भोपाल, 9 जुलाई (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले को उजागर हुए दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। लेकिन जांच पूरी होना अभी बाकी है। सच से पर्दा उठना एक अंतहीन गाथा बन चला है।
मामले में कथित तौर पर 2100 लोग गिरफ्तार हैं, 48 मौतें हो चुकी हैं। अभी न जाने क्या-क्या होने वाला है। कुल मिलाकर यह मामला आज जिस मोड़ पर है, उससे उच्च न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी (विशेष जांच दल) और उसकी देखरेख में जांच कर रहे एसटीएफ (विशेष कार्य बल) सवालों के घेरे में हैं।
राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक अरुण गुर्टू का कहना है कि यह मामला इतना व्यापक है कि राज्य सरकार या एसटीएफ के लिए दिक्कत भरा हो सकता है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा “यह मामला सुलझाना सीबीआई के लिए भी आसान नहीं होगा, क्योंकि एक तरफ जहां हजारों भर्तियांे में गड़बड़ी हुई है, वहीं मौतें भी हो रही हैं। सीबीआई को इस मामले की तह तक पहुंचने में काफी मेहनत करनी होगी।”
उन्होंने आगे कहा, “व्यापमं कांड से जुड़े लोगों की मौतें सिर्फ इत्तेफाक नहीं हो सकतीं। इनका कोई न कोई नाता व्यापमं घोटाले से है। यह कितना गहरा है, यह तो जांच एजेंसी ही जान सकती है।”
दरअसल, ये दोनों जांच दल घोटाले की तह तक तो दूर उसकी सतह भी नहीं छू पाए हैं। मामला दिन पर दिन उलझता जा रहा है। इसका असर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि पर भी पड़ रहा है।
लेकिन चौहान अपने को पाक-साफ बताते हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी और अब वह सीबीआई जांच को भी तैयार हैं।
चौहान ने अगस्त 2013 में मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी थी। फिर उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया और पूर्व न्यायाधीश चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल 2014 में एसआईटी गठित की, जिसकी देखरेख में एसटीएफ जांच कर रहा है।
एसटीएफ ने पाया कि सिर्फ पीएमटी ही नहीं, बल्कि व्यापमं के माध्यम से होने वाली भर्ती परीक्षाओं में भी गड़बड़ी हुई है। मुख्यमंत्री ने भी विधानसभा में स्वीकारा था कि 1,000 फर्जी नियुक्तियां हुई हैं।
इस मामले में सरकार से लेकर राजनीतिक दलों से जुड़े लोग गिरफ्तार किए गए। पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी रहे ओ. पी. शुक्ला, भाजपा नेता सुधीर शर्मा, राज्यपाल के ओएसडी रहे धनंजय यादव, व्यापमं के नियंत्रक रहे पंकज त्रिवेदी, कंप्यूटर एनालिस्ट नितिन महेंद्रा फिलहाल जेल में हैं।
केंद्रीय मंत्री उमा भारती और आरएसएस के सुरेश सोनी पर भी आरोप लग चुके हैं। राज्यपाल रामनरेश यादव पर भी प्रकरण दर्ज है, उनके आरोपी बेटे शैलेश की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।
एसआईटी सूत्रों के अनुसार, अब तक कुल 55 मामले दर्ज किए गए हैं, 2100 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, 491 आरोपी अब भी फरार हैं।
एसआईटी इस मामले से जुड़े 33 लोगों की मौत स्वीकारती है, जिनमें से चार मौतों की वजह आत्महत्या मानती है। बाकी मौतों को वह प्राकृतिक मानती है।
लेकिन पीएमटी फजीर्वाड़े के खुलासे में अहम भूमिका निभाने वाले व्हिसिलब्लोअर डॉ. आनंद राय 10 मौतों को संदिग्ध बताते हैं।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “व्यापमं घोटाले में जो मौतें हुई हैं, उनमें आठ से 10 संदिग्ध हैं।”
डॉ. राय नम्रता डामोर, नरेंद्र तोमर, जबलपुर मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन चिकित्सक डी. के. साक्कले और पत्रकार अक्षय सिंह की मौत को संदिग्ध करार देते हैं।
डॉ. राय सड़क हादसे में हुई कुछ दलालों की मौतों को भी संदिग्ध मानते हैं। वह कहते हैं, “इन मौतों का सच सामने आना चाहिए। इनके पीछे कई बड़े राज छुपे हैं।”
मौतों का सिलसिला अब भी जारी है, लेकिन संख्या को लेकर मतभेद है। कांग्रेस की प्रदेश इकाई के मुख्य प्रवक्ता के. के. मिश्रा मृतकों की संख्या 48 बताते हैं, जिनमें 20 संदिग्ध हैं। एसआईटी प्रमुख चंद्रेश भूषण ने मौतों की संख्या 33 बताई है।
इस कांड की कवरेज को पहुंचे टीवी पत्रकार अक्षय सिंह की मौत के बाद मुख्यमंत्री ने एसआईटी को मौतों की जांच के लिए पत्र लिखा है। इस पर भूषण का कहना है, “पत्र मिलने के बाद इन मौतों की जांच पर विचार किया जा रहा है।”
राज्य में चिकित्सा महाविद्यालयों के लिए प्री मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) आयोजित करने के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) 1970 में अस्तित्व में आया था। इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में प्रवेश परीक्षा के लिए 1980 में प्री इंजीनियरिंग बोर्ड (पीईटी) बनाया गया था। बाद में 1982 में दोनों संस्थानों का विलय कर व्यापमं नाम दिया गया।
व्यापमं 2004 तक सिर्फ पीएमटी और पीईटी ही आयोजित कर रहा था, लेकिन इसी वर्ष से इसे सरकारी नौकरियों में भर्ती का जिम्मा भी सौंप दिया गया।
धीरे-धीरे व्यापमं व्यापक हो गया। उसे राज्य के सभी विभागों के उन पदों की भर्ती परीक्षाओं की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिनका आयोजन मप्र लोकसेवा आयोग नहीं कराता है।
सूत्रों के अनुसार, पीएमटी के जरिए फर्जी तरीके से चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिले के इक्का-दुक्का मामले सामने आते रहे हैं, पुलिस ने कार्रवाइयां भी की है। लेकिन सात जुलाई, 2013 को पहली बार एक गिरोह इंदौर की अपराध शाखा की गिरफ्त में आया, जो पीएमटी परीक्षा में फर्जी अभ्यर्थियों को बैठाता था। फिर इस फर्जीवाड़े का सरगना डॉ.जगदीश सागर गिरफ्तार किया गया।
जांच में खुलासा हुआ कि सागर के तार व्यापमं के अधिकारियों से जुड़े थे और वह उत्तर पुस्तिका में बदलाव करा देता था या फिर परीक्षा कक्ष में बैठने की ऐसी व्यवस्था करवाता कि फर्जी अभ्यर्थी के आसपास के अभ्यर्थियों को उससे मदद मिल जाती थी। कंप्यूटर से भी छेड़छाड़ कर मनमाफिक परिणाम तैयार कराए जाते थे।
पूर्व विधायक, सामाजिक कार्यकर्ता पारस सखलेचा ने आईएएनएस से कहा, “व्यापमं ने बीते 10 वर्षो में 2004 से 2014 के बीच कुल 77 भर्ती परीक्षाएं 75 हजार पदों के लिए आयोजित की। इनमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई और इसमें सीधे तौर पर मुख्यमंत्री संलिप्त हैं। धन का लेन-देन हुआ है। नितिन महेंद्रा ने अपने बयान में यह बात स्वीकार की है।”
व्यापमं घोटाले से चारों तरफ उबाल है। सभी उंगलियां मुख्यमंत्री की तरफ उठ रही हैं।
भोपाल के शिवाजी नगर में सब्जी का ठेला लगाने वाले रईस खान कहते हैं, “इस मामले में कुछ तो गड़बड़ है। मुख्यमंत्री का नाम भी आ रहा है।”
जनरल स्टोर संचालक गणेश दुबे कहते हैं, “बच्चों का भविष्य बर्बाद हुआ है। सरकार से जुड़े लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, मुख्यमंत्री की पत्नी तक का नाम लिया जा रहा है।”
ऑटो चालक नारायण प्रसाद कहते हैं, “चौहान ने हर वर्ग के लिए योजनाएं बनाई। प्रदेश की हालत भी उनके शासनकाल में बदली, मगर व्यापमं घोटाले से उन पर उंगली उठ रही है।”