प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिन देशों के साथ बेहतर समझ बनी है, उनमें जर्मनी का प्रमुख स्थान है। जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल की भारत यात्रा को इसी नजरिए से देखा जा सकता है। कुछ दिन पहले ही जी-फोर शिखर वार्ता में मोदी और मार्केल की भेंट हुई थी। उसमें सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के अलावा द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिन देशों के साथ बेहतर समझ बनी है, उनमें जर्मनी का प्रमुख स्थान है। जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल की भारत यात्रा को इसी नजरिए से देखा जा सकता है। कुछ दिन पहले ही जी-फोर शिखर वार्ता में मोदी और मार्केल की भेंट हुई थी। उसमें सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के अलावा द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी थी।
मार्केल दोनों देशों के बीच सहयोग को तेजी से आगे बढ़ाना चाहती हैं। इसीलिए जी-फोर बैठक के कुछ ही दिन बाद उन्होंने भारत यात्रा का निर्णय लिया। यह अच्छी बात है कि दोनों देशों के बीच आपसी समझ केवल द्विपक्षीय मसलों तक सीमित नहीं है। वैश्विक मामलों में भी साझा रणनीति पर आगे बढ़ने का फैसला हुआ है। इसका दूरगामी प्रभाव होगा।
पिछले एक वर्ष में ही द्विपक्षीय व्यापार में करीब तेरह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसे और अधिक बढ़ाने का मंसूबा दिखाया गया। जर्मनी इस समय यूरोपीय यूनियन की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश है। यूरोपीय यूनियन के प्रत्येक फैसलों में जर्मनी की भूमिका को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है।
इस संबंध में एंजेला मार्केल के प्रभावशाली नेतृत्व की सराहना की जाती है। उनके नेतृत्व में जर्मनी ने तेजी से विकास किया है। जर्मनी और मार्केल के 28 सदस्यीय यूरोपीय यूनियन में इस महत्व का लाभ भारत को भी मिलेगा। भारत के साथ आर्थिक व व्यापारिक रिश्ते मजबूत बनाने के उनके प्रयास का असर यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ेगा।
यह भी अच्छा है कि आतंकवाद के मसले पर भी भारत और जर्मनी के विचार समान हैं। दोनों इसके खिलाफ वैश्विक रणनीति तैयार करने की पैरवी कर रहे हैं। इस सहमति का विस्तार पूरी यूरोपीय यूनियन तक हो रहा है। इसी प्रकार सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का दोनों देश दावा कर रहे हैं।
जर्मनी विकसित देश है, तो भारत सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाला देश है। विश्व समुदाय इन दोनों देशों को नजरंदाज नहीं कर सकता।
जाहिर है कि भारत और जर्मनी ने पिछले कुछ समय में साझा मसलों की तलाश कर ली है। अब इन पर आगे बढ़ने की तैयारी परवान चढ़ रही है। मार्केल वहां गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही हैं, लेकिन उनके मामले में यह अच्छाई है कि उन्हें राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर विरोध या दबाव का सामना नहीं करना पड़ा है।
पिछले दो वर्षो से वह गठबंधन सरकार में रहते देश की उन्नति में सहयोगपूर्ण ढंग से प्रयास कर रही हैं। लेकिन भारत में विधायी स्तर पर सरकार के लिए स्थिति अनुकूल नहीं है। सत्तापक्ष का राज्यसभा में बहुमत नहीं है। ऐसे में सरकार अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए कई कदम उठाने में विफल हो जाती है।
भरत सरकार को बड़ी कश्मकश के बाद भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लेना पड़ा। राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह से जीएसटी बिल पर भी अनिश्चतता की स्थिति बनी है। शायद यही कारण है कि मेक इन इंडिया के मार्ग में बाधा पड़ी है।
जर्मनी जैसे देश भारी मात्रा में निवेश के लिए तत्पर है। मार्केल ने स्वीकार भी किया है कि वैश्विक मंदी से भारत ने अपने को सुरक्षित रखा है। यहां निवेश के अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में बड़े सुधार किए गए हैं। इस पर राजनीति हो रही है।
नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनकी सरकार कारोबारी माहौल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने अगले वर्ष तक वस्तु एवं सेवा कर लागू हो जाने की उम्मीद जताई है। उन्हांेने ठीक ही कहा कि प्रतिभाओं, तकनीक और निवेश को आकर्षित करने के संबंध में इससे बेहतर माहौल पहले कभी नहीं था।
एंजेला मार्केल ने व्यावसायिक साझेदारी पर सर्वाधिक जोर दिया। इसीलिए तीन दिवसीय यात्रा में खासतौर पर वह बंगलुरू गईं। यहां उन्होंने मोदी के साथ इंडो-जर्मन समिट में भाग लिया। उन्हांेने जर्मनी की शीर्ष ऑटोमेटिक कंपनी वॉश के स्थानीय इनोवेशन सेंटर का भी दौरा किया। अगले तीन महीने में यह कंपनी साढ़े छह सौ करोड़ का निवेश करेगी।
जर्मनी हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए नौ सौ पंद्रह करोड़ रुपये का कर्ज भी देगा। इससे फिलहाल आंध्र और हरियाणा में हरित ऊर्जा पर कार्य होगा। लेकिन इसकी सफलता का अन्य प्रदेशों पर भी प्रभाव पड़ेगा। वह भी इस योजना को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे। ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों की इस समय बहुत जरूरत है। जर्मनी ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ा सहयोग करेगा।
यह भी गौरतलब है कि जर्मनी परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग नहीं करेगा। मार्केल ने कुछ दिनों पहले ही अपने देश के सभी परमाणु ऊर्जा केंद्रों को बंद करने की घोषणा की है। इसे सुरक्षित नहीं माना गया। ऐसे में हरित ऊर्जा पर जोर दिया जा रहा है। इसी के साथ सौर ऊर्जा पर भी जर्मन सहयोग करेगा। दोनों प्रकार के प्रोजेक्टों के लिए जर्मनी पंद्रह हजार करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देगा।
संप्रग सरकार ने परमाणु ऊर्जा पर बहुत समय लगाया था, लेकिन इसकी प्रगति बेहद निराशाजनक थी। विकसित देश अपने परमाणु ऊर्जा केंद्र बंद कर रहे थे, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसे लेकर परेशान थे। मोदी ने इस नीति को बदला है। अब हरित और सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत में इसकी अपार संभावना है। विकास के लिए ऊर्जा अनिवार्य है। इस कमी को दूर करने में जर्मनी का सहयोग महत्वपूर्ण होगा।
भारत से सहयोग बढ़ाने पर जर्मनी को भी बड़ा लाभ होगा। भारतीय आईटी कौशल का जर्मनी में दबदबा है। खाद्य सुरक्षा, आधुनिक कृषि तकनीक का समझौता भी बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में इन विषयों पर अब तक अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। हजारों टन खाद्यान्न रख-रखाव के अभाव में प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाता है। इसकी बचत से देश की बहुत लाभ होगा। इससे यूरोप को बड़ी मात्रा में फल-सब्जी का निर्यात करना संभव हो सकेगा।
जाहिर है सुरक्षा सहित दोनों देशों के बीच हुए सभी अट्ठारह समझौते बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनसे द्विपक्षीय सहयोग में बड़ा उछाल दिखाई देगा। (आईएएनएस/आईपीएन)