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भारत में बढ़ रहे कुष्ठ के मरीज: डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपोर्ट

January 6, 2020 8:04 pm by: Category: विज्ञान Comments Off on भारत में बढ़ रहे कुष्ठ के मरीज: डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपोर्ट A+ / A-

दुनिया में कुष्ठ के मामले घटने के बावजूद बीते साल ऐसे दो लाख नए मामले सामने आए हैं. इनमें से लगभग आधे मामले भारत में ही हैं,ये तथ्य डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपोर्ट में सामने आये हैं.

आज से कुछ 13-14 साल पहले ही भारत के कुष्ठमुक्त होने का एलान कर दिया गया था. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूयूएचओ) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि कुष्ठ रोग एक बार फिर भारत के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में बीते साल कुष्ठ रोग के जो लगभग दो लाख मामले सामने आए थे उनमें से आधे भारत में ही हैं.

भारत में ऐसे मरीजों के साथ होने वाला सामाजिक भेदभाव, उनको कलंक मानने और उनके खिलाफ पूर्वाग्रह ही इस बीमारी को खत्म करने की राह में सबसे बड़ी बाधाएं हैं. देश में अब भी इन मरीजों की हालत बदतर है और उनको हेय दृष्टि से देखा जाता है. इस रोग के इलाजयोग्य होने के विशेषज्ञों के दावों के बावजूद 21वीं सदी में भी समाज की मानसिकता में कोई खास बदलाव नहीं आया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के मुताबिक किसी देश को कुष्ठमुक्त उसी समय घोषित किया जाता है जब प्रति दस हजार की आबादी में कुष्ठ के एक से भी कम मामले सामने आएं. लेकिन भारत के कई राज्यों में यह औसत ज्यादा है. मिसाल के तौर पर बिहार में यह 1.18 प्रतिशत है, तो ओडीशा व छत्तीसगढ़ में क्रमश: 1.38 और 2.25 प्रतिशत. वर्ष 2017 में देश में 1.35 लाख नए मामले सामने आए थे. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक फरवरी 2017 को संसद में अपने बजट भाषण में कहा था कि वर्ष 2018 में देश से कुष्ठ रोग का खात्मा हो जाएगा. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उसी समय उनके इस दावे पर सवाल उठाए थे.

अब डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपार्ट ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद देश में कुष्ठ के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं.भारत ने इस बीमारी से जुड़े दो अहम कानूनों को रद्द कर दिया है. केंद्र ने वर्ष 2016 में ब्रिटिशकाल में बने लेप्रसीअधिनियम को रद्द कर दिया था. उसके तहत कुष्ठ के मरीजों के साथ भेदभाव होता था. अभी हाल में सरकार ने उस कानून को भी खत्म कर दिया है जिसमें कुष्ठ को तलाक की ठोस वजह माना जाता था.

भारत में कुष्ठ के मरीजों की तादाद काफी बढ़ रही है. बीते साल ही यहां एक लाख से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए थे. अभी कई ऐसे मामले सामने नहीं आ सके हैं. ऐसे में यह तादाद और ज्यादा हो सकती है. इस बीमारी से जुड़े मिथकों और भेदभाव की वजह से कई लोग शुरुआती दौर में इसका खुलासा नहीं करते. इसका पता लगने तक बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती दौर में पता लगने पर इस बीमारी का पूरी तरह इलाज संभव है. लेकिन इसके साथ जुड़े पूर्वाग्रहों की वजह से लोग सामने नहीं आते.

एक अनुमान के मुताबिक भारत में इस बीमारी की वजह से अपने अंग खोने या विकृत होने वाले लोगों की तादाद लगभगा तीस लाख है. यह लोग अब भी समाज की मुख्यधारा से कटे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कुष्ठ की बीमारी से जुड़ी भ्रांतियां, सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएं और जागरूकता का अभाव ही इस बीमारी को जड़ से खत्म करने की राह में सबसे बड़ी बाधाएं हैं.

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सम्पादन: अनिल कुमार सिंह

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