होशंगाबाद :
कुछ तो शर्म करते सरकार…. ~~~~~~~~~~~~~~~~ अभी-अभी पंचम नदी महोत्सव स्थल से निकली हूँ।यह स्थल बांद्राभान का वही नर्मदा तट है,जो पूर्व में भी नदी महोत्सव का स्थान रहा है।कुछ बातें बहुत ज़्यादा अखरती हैं।भोपाल और होशंगाबाद में पंचम नदी महोत्सव के बहुत से होर्डिंग्स देखे।पर हर जगह मैं वह नाम और चेहरा देखने के लिए तरसती रही जिसने इस नदी उत्सव की नींव रखी।कहीं एक तस्वीर नहीं,कहीं नाम तक नहीं! मेरे ऐसा कहने पर यदि आप इसका जवाब इस तर्क के रूप में देते हैं कि अनिल जी तो अपनी वसीयत में अपने नाम से कुछ भी न करने के लिए कहकर गए थे तो मेरा सवाल आपसे यह है कि फिर क्यों आपने इसी महोत्सव के एक हॉल का नाम ‘अनिल माधव दवे परिसर’ रख दिया?क्यों नहीं मानी पूरी बात? अनिल जी तो होर्डिंग्स वाली राजनीति के भी विरोधी थे। उन्होंने कहा था लेकिन उनके कामों को और उनके नाम को ज़िंदा रखने की ज़िम्मेदारी हम सब की है। खानापूर्ति तो बस खानापूर्ति ही होती है साहब।उसके कितने भी बहाने दिए जाएँ वो सांत्वना नहीं देते। इसी तट पर ‘श्री अनिल माधव दवे’ के अंतिम संस्कार पर हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी ने बड़े ही मार्मिक ढंग से यह घोषणा की थी कि “अनिल जी नहीं रहे तो क्या हुआ,अब नदी महोत्सव सरकार करवाएगी”। सरकार,आप इतनी जल्दी भूल गए उनको?थोड़ा वक़्त तो हुआ होता। ।किसी ने मुझसे कहा था कि”राजनीति में ग़लतियाँ या भूल नहीं होतीं” इसलिए इस ग़लती को आप भूल कहकर टरका नहीं सकते। यदि प्रदेश संगठन के एक बड़े अधिकारी एवं नर्मदा समग्र के समस्त कार्यकर्ता न होते तो शायद यह आयोजन भी न होता। उन सभी को इस बात की बधाई कि ऐसी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अनिल जी के इस आयोजन को ज़िंदा रखा अन्यथा ‘नदी महोत्सव’ केवल एक ‘हाईजैक्ड उत्सव’ बनकर रह जाता।
यह वो पोस्ट है जो अनिल माधव दवे की भतीजी बहू धरा पांडे ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखी है.यह पोस्ट आते ही दवे जी को जानने वाले में महोत्सव को ले दबा आक्रोश मुखर हो उठा.बात फैली तो दूर तक गयी लेकिन एक बड़े अखबार ने खबर और लिखी पोस्ट की भाषा ही बदल दी स्पष्ट था की प्रबंधन पर दबाव था .
अनिल दवे जी का पर्यावरण संरक्षण को लेकर असीम प्रेम था इस हेतु वे राजनीति को भी दरकिनार कर देते थे .मुझसे उनकी इन विषयों पर चर्चा होती थी उनकी पर्यावरण संरक्षण के प्रति दूर दृष्टि उनके प्रयासों में झलकती थी.पर्यावरण संरक्षण हेतु उनके पास असीमित उपयोगी सुझाव थे.
नदी महोत्सव के आयोजन का स्वरूप राजनैतिक दिखा इसे लिखने में गुरेज नहीं महोत्सव की आत्मा इस आयोजन से दूर रही .यह वास्तव में “हाईजेक” हो गयी थी .नेताओं के आगमन के साथ बदलते पोस्टर उन्हें साधने का साधन मात्र था .
भाजपा संगठन महामंत्री सुहास भगत ने अपना धर्म अनिल दवे के लिए निभाया ,उनका पुराना परिचय ,संरक्षण का कर्ज भगत ने नदी महोत्सव अपने हाथों में ले पूरा किया ,प्रबंधन टीम ने अपना कार्य बखूबी निभाया किसी तरह की अव्यवस्था सामने नहीं आयी .नेताओं के संबोधन से नदी पर चर्चा का समय कम हुआ.
सामयिक राजनैतिक व्यवस्था में कठिन है की अनिल माधव दवे के सपनों को दिशा मिले किन्तु आशा है की उनकी टीम से जुड़े कुछ लोग अपने प्रयासों से कार्यक्रम को आगे बढ़ा सकें दवे जी की तरह विचार ,योजना ,प्रबंधन ,और कार्यक्रम को धरातल पर लाना अब बिरले के बस की बात है .
अनिल कुमार सिंह भोपाल से