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 पत्थरबाजी से कश्मीर पाषाण युग की ओर अग्रसर | dharmpath.com

Wednesday , 18 June 2025

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पत्थरबाजी से कश्मीर पाषाण युग की ओर अग्रसर

श्रीनगर, 6 अगस्त (आईएएनएस)। लगभग एक महीने से कश्मीर अस्त-व्यस्त है। पूरे इलाके को बंद कर दिया गया है। गत 8 जुलाई को हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद से अलगाववादी आक्रोशित हैं और सुरक्षा बल जवाबी कार्रवाई करने का कोई मौका नहीं गवां रहे हैं।

श्रीनगर, 6 अगस्त (आईएएनएस)। लगभग एक महीने से कश्मीर अस्त-व्यस्त है। पूरे इलाके को बंद कर दिया गया है। गत 8 जुलाई को हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद से अलगाववादी आक्रोशित हैं और सुरक्षा बल जवाबी कार्रवाई करने का कोई मौका नहीं गवां रहे हैं।

अंतिम परिणाम आम लोगों के लिए खौफनाक रहे हैं जो प्रशासन की ओर से लगाए गए कर्फ्यू के साए में जी रहे हैं।

प्रतीत होता है कि हिंसा और विरोध प्रदर्शनों का चक्र इस इलाके को रसातल की ओर ढकेल रहा है। भारी अनिश्चितता का माहौल है और भविष्य अंधकारमय लगता है।

गत एक माह में 52 लोग हिंसा में मारे गए हैं और करीब 3,500 लोग घायल हुए हैं। साथ ही सुरक्षा बलों द्वारा पैलेट गन से अंधाधुंध की गई फायरिंग से दर्जनों लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है।

बुरहान वानी के मारे जाने के बाद सरकार ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश भी की, लेकिन पूरे दक्षिणी कश्मीर में सुलग रहे आक्रोश ने ज्वालामुखी का रूप ले लिया है।

राज्य सरकार इस भरोसे थी कि हिंसा करते-करते लोग थक जाएंगे और उनका प्रदर्शन फीका पड़ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

नजरबंद किए गए अलगाववादी गुप्त रूप से विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं और घाटी बंद है।

आज चाहे वह पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां या कुलगाम जिला हो, स्थिति बेहद नाजुक है। इलाके में विरोध प्रदर्शन के दौरान उग्रवादी हथियार चमका रहे हैं। वे आम लोगों को इस आजादी की आर पार की लड़ाई में शामिल होने के लिए अभिप्रेरित कर रहे हैं।

इसका असर सुरक्षा बलों पर भी पड़ रहा है। ड्यूटी की लंबी अवधि, शत्रुतापूर्ण इलाके में कर्फ्यू लागू करना और विरोध प्रदर्शन से निपटने के उनके तरीके की आलोचना से उन्हें भी मदद नहीं मिल रही है।

इसी तरह आम लोग भी विरोध प्रदर्शन और कर्फ्यू से त्रस्त हैं।

दुकानों में आवश्यक वस्तुएं, खाद्य पदार्थ और दवाएं नहीं हैं। आतंकित होकर निवासी सामान जमा करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। नतीजा है कि असामाजिक तत्वों द्वारा संकट से फायदा उठाने के साथ लाभ कमाना दिनचर्या बन गया है।

फल उत्पादकों के लिए भी स्थिति उतनी ही गंभीर है। बंद के कारण फलों को बाजार भेजना उनके लिए मुश्किल हो गया है। इसका असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।

हालांकि सरकार अब भी उम्मीद कर रही है कि आगे बिना खून बहाए विरोध प्रदर्शन खत्म हो जाएगा, लेकिन क्या इस झगड़े का कोई स्थायी हल निकल पाएगा?

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