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 काशी में “काई” , गंगा में कहां से आई | dharmpath.com

Wednesday , 18 June 2025

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काशी में “काई” , गंगा में कहां से आई

June 2, 2021 6:19 pm by: Category: सम्पादकीय Comments Off on काशी में “काई” , गंगा में कहां से आई A+ / A-

काशी-खबरों की दौड़ में जब कोई अखबार पिछड़ जाता है तो अपनी विफलता को छिपाने के लिए एक नया नैरेटिव बुनता है. और फिर विभिन्न प्रकार के तर्कों के सहारे उसे सही साबित करने में जुट जाता है. बनारस #varanasi  से प्रकाशित “हिन्दुस्तान” अखबार के रिपोर्टर के साथ भी “गंगा में काई” को लेकर कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है.

1 जून को इस अखबार में खबर प्रकाशित हुई थी कि काशी में गंगा #ganga में काई प्रयागराज से आई है और आज यानी 2 जून को पृष्ठ – 4 पर प्रकाशित खबर “तेज प्रवाह से ही बहेंगे गंगा के शैवाल” खबर में बताया गया है कि लोहित नदी से “शैवाल” गंगा में आया. लोहित नदी में शैवाल कहां से आया ? पता लगाया जा रहा है. इस खबर में प्रयागराज से “काई” के आने की थ्योरी का जिक्र नहीं है.

यह अखबार अपने कथन को साबित करने के लिए बीएचयू के इंस्टीट्यूट आॅफ एनवायरमेंट एंड सस्टनेबल डेवलपमेंट के साइंटिस्टों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी गवाह के रूप में खबर में सामने लाया है. यहां “हिन्दुस्तान” अखबार के संपादक से मेरा पांच सवाल है.

1. शैवाल और काई की प्रजाति में फर्क है. पानी में शैवाल झागदार लच्छे की तरह फैला रहता है, जबकि काई के टुकड़े छोटे-छोटे हरे रंग के होते हैं, जो शरीर पर चिपक जाते हैं. गंगा में शैवाल बहकर आया है या काई ?

2. गांव में गड़ही या तालाब में “शैवाल / काई” किस नदी से बहकर आती है ? जिस गड़ही में काई हो उसमें भैंस को नहाते हुए कभी देखे हैं ? यदि देखे होते तो काई और शैवाल का फर्क समझ में आ जाता. भैंस की पीठ पर काई के टुकड़ों की छोटी-छोटी पर्तें जम जाती हैं.

3. शैवाल को “काई” कहने में शर्म क्यों आ रही है ? शैवाल की कई किस्में होती हैं, उसी में से एक प्रजाति देसज भाषा में “काई” है. किसी ग्रामीण से पूछ लीजिए. वह काई के बारे में बता देगा. जंगल में रहने वाले सभी जानवर “शेर” नहीं होते हैं. उनकी प्रजाति अलग-अलग होती है. ठीक यही स्थिति नदी में शैवाल / काई की है.

4. हां, कल प्रयागराज से गंगा में काई आने की जो खबर दिए थे, उसका क्या हुआ ? आज की खबर में उसका कोई जिक्र नहीं है ? क्योंकि आपकी नई खोज के मुताबिक गंगा में शैवाल लोहित नदी से आया है.

5. काशी में एक पखवारे से गंगा में केदारघाट से लेकर पंचगंगाघाट तक 6-7 किलोमीटर के दायरे में हरी काई फैली थी तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड #uppolutioncontrolboard कहां था ? क्या यह उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती है कि काशीवासियों को वस्तुस्थिति के बारे में बताए ?

दरअसल “दैनिक जागरण” के फोटोग्राफर उत्तम राय चौधरी ने जानकारी मिलने पर गंगा में हरी काई लगने की तस्वीर खींची और वह “जागरण” #dainikjagran में प्रकाशित हो गई. उन्होंने 3-4 लाइन में चित्र परिचय लिखा था, जिससे काई की खबर सोशल मीडिया में चर्चा में आ गई. तब उत्तम को भी इस खबर की मारक क्षमता के बारे में जानकारी नहीं थी. नहीं तो “जागरण” अखबार का रिपोर्टर इस पर विस्तृत खबर देता. झटके में फोटोग्राफर की फोटो 23 मई को अखबार में छप गई.

उसके बाद “आपन खबरिया” पोर्टल ने इस पर बहस शुरू करा दी. जिसमें बीएचयू के प्रोफेसर यूके चौधरी भी थे, जो अपनी बात खुलकर रखे. उसके बाद NDTV ने खबर दिखाई और बनारस में गंगा में काई लगने की बात राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गई. इस दौरान “हिन्दुस्तान” अखबार सोया था. जब नींद टूटी तो खबरिया तुक्का मारा कि “काशी में गंगा में काई प्रयागराज से आई”..! लेकिन प्रयागराज से बनारस की लगभग एक सौ किलोमीटर की “काईयात्रा” में यह किसी को नहीं दिखी. सिर्फ “हिन्दुस्तान” अखबार के रिपोर्टर को दिखी थी. अब कह रहे हैं कि शैवाल / काई लोहित नदी से गंगा में आई. नदी में कहां से आया पता लगाया जा रहा है.

खबरों की दुनिया का खेला ठीक चुनावी राजनीति की तरह है. जैसे राजनीति में नैरेटिव खड़ा क्या जाता है, वैसे ही खबरों में भी है. 2019 के लोकसभा चुनाव की बातें आपको याद होंगी. पुलवामा हमले का नैरेटिव व देशभक्ति की लहर इतनी उबाल पर थी कि लोग नोटबंदी, जीएसटी, बेरोरगारी, रोजगार, अस्पताल आदि के मुद्दे भूल गए. सब लोग चौकीदार बन गए और अब अस्पताल में बेड, आॅक्सीजन और दवाई के लिए भटक रहे हैं. यह उस नैरेटिव का कमाल है, जिसे बनाने में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है.

देखते चलिए कि काशी में गंगा में काई कहां से आई ? अनेक शोधार्थी उसकी तलाश में लगे हैं. प्रयागराज की थ्योरी के बाद लोहित नदी की थ्योरी आई है. यह इस नदी का अपना उत्पाद नहीं है, उसमें भी कहीं से आई है. उसका पता लगाया जा रहा है. इस खोजी अभियान में गंगा में घाटों को बालू और मलबे से पाटना और उस पार “रेत की नहर” की भूमिका क्या है ? “हिन्दुस्तान” अखबार की खबर में इसका कोई जिक्र नहीं है. मुझे लगता है कि काशीवासियों को खुद पहल करके यह खोजना चाहिए कि बनारस में गंगा में काई कहीं से आई है या यह हमारा “अपना उत्पाद” है. यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सभी गंगापुत्रों को मिलकर निभानी चाहिए. गंगाघाट के किनारे रहने वाले नाविकों से अधिक गंगा के बारे में कौन जानता है ? आखिर उनकी जीविका गंगा से ही चलती है.
लेख साभार-#सुरेश_प्रताप  

सम्पादन-अनिल कुमार सिंह

काशी में “काई” , गंगा में कहां से आई Reviewed by on . काशी-खबरों की दौड़ में जब कोई अखबार पिछड़ जाता है तो अपनी विफलता को छिपाने के लिए एक नया नैरेटिव बुनता है. और फिर विभिन्न प्रकार के तर्कों के सहारे उसे सही साबि काशी-खबरों की दौड़ में जब कोई अखबार पिछड़ जाता है तो अपनी विफलता को छिपाने के लिए एक नया नैरेटिव बुनता है. और फिर विभिन्न प्रकार के तर्कों के सहारे उसे सही साबि Rating: 0
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