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 रंग बदलने में गिरगिट को मात दे रहे उप्र के नेता (विश्लेषण) | dharmpath.com

Wednesday , 18 June 2025

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रंग बदलने में गिरगिट को मात दे रहे उप्र के नेता (विश्लेषण)

लखनऊ, 13 अगस्त (आईएएनएस)। रंग बदलना राजनेताओं की फितरत होती है। वे पार्टियां और विचारधाराएं आसानी से बदल लेते हैं। जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है, वे तेजी से अपना रंग बदलने में गिरगिट को भी कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।

लखनऊ, 13 अगस्त (आईएएनएस)। रंग बदलना राजनेताओं की फितरत होती है। वे पार्टियां और विचारधाराएं आसानी से बदल लेते हैं। जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है, वे तेजी से अपना रंग बदलने में गिरगिट को भी कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।

नमूना के तौर पर पूर्व बसपा नेता और विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को लिया जा सकता है। वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उनके नेताओं के खिलाफ तीखी और सख्त टिप्पणी के लिए मशहूर थे। मौर्य की कटु टिप्पणी से प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह जैसे शक्तिशाली नेता तक आहत हुए थे। बहन मायावती को खुश करने की कोशिश में उन्होंने किसी को भी नहीं बख्शा था। लेकिन इस सप्ताह सब कुछ बदल गया। शक्तिशाली कुर्मी नेता ‘नीले खेमे’ से ‘केसरिया खेमे’ में चले गए और राज्य में भाजपा की सरकार बनवाने की कसम खाई।

विधानसभा मार्ग स्थित प्रदेश भाजपा के मुख्यालय में गत बुधवार को पहली बार पहुंचे मौर्य ने मोदी और शाह की तारीफ के पुल बांधे। उन्होंने कई अवसरों पर मोदी-शाह की गुजराती जोड़ी को ‘शैतान युगल’, ‘भूखे भेड़िये’ और ‘नौटंकीबाज’ जैसी उपमा दी थी। लेकिन अब मौर्य का हृदय परिवर्तन हो गया है।

हालांकि वह यह स्पष्ट करने में विफल रहे कि कथित ‘घृणा के सौदागरों’ और ‘दंगों के नायकों’ में उन्होंने अचानक दैवीय गुण कैसे देख लिया। मौर्य के एक सहयोगी ने कहा, “कुल मिलाकर यह राजनीति है।” उन्होंने सलाह दी, “किसी को अतीत में नहीं जीना चाहिए।”

इतना ही नहीं, भाजपा के रणनीतिकार भी मौर्य को अपनाने के बारे में कोई टिप्पणी करने से इनकार कर रहे हैं, जबकि उन्होंने न केवल भजपा नेताओं के लिए अपशब्द कहा था, बल्कि 21 सितंबर, 2014 को लक्ष्मी और गणेश जैसे हिंदू देवी-देवताओं का भी अनादर किया था। इस मामले पर मौर्य के खिलाफ एक मुकदमा भी दर्ज किया गया था और भाजपा इस मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरी थी।

जहां तक भाजपा का सवाल है तो उसने बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने पर अपने नेता दयाशंकर सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया और गाली देने वाले मौर्य पर गुलाब के फूलों की वर्षा की। इसको लेकर हालांकि यहां कई लोगों की भृकुटियां तन गई हैं।

ठीक उसी दिन कांग्रेस के तीन मुस्लिम विधायक मौर्य की तरह ‘हृदय परिवर्तन’ का दावा करते हुए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो गए।

विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक रहे अमेठी के तिलोई से विधायक मोहम्मद मुस्लिम बसपा में शामिल हो गए। उन्होंने सोनिया गांधी के बारे में कहा, “वह न तो अपने कानों से सुन सकती हैं और न ही अपनी आंखों से देख सकती हैं।”

बसपा में शामिल होने वाले कांग्रेस के दूसरे विधायक कासिम अली हैं। वह रामपुर के राजपरिवार के वंशज हैं और पिछले पांच साल (2007 से 2012 के बीच) में दो बार पार्टी बदल चुके हैं। पहले वह बसपा में थे। पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए और विधायक बन गए।

उन्होंने कहा, “अब आंखें खुल गई हैं और गलतफहमियां दूर हो गई हैं।” हालांकि ऐसा होने में पांच साल लग गए।

इसी बीच सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (सपा) के बुढ़ाना से विधायक नवाजिश आलम खान पर नई विचारधारा हावी हो गई और उन्होंने मुलायम सिंह यादव को धोखा देकर उनके चिर प्रतिद्वंद्वी मायावती की बसपा का दामन थाम लिया।

खान अब कह रहे हैं कि वह सपा में घुटन महसूस कर रहे थे। यह अलग बात है कि बसपा छोड़ने वाले अधिकांश नेताओं ने भी पार्टी छोड़ने के लिए इसी तरह घुटन महसूस होने का आरोप लगाया है।

कुछ महीने पहले पुराने समाजवादी नेता अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए छह साल बाद सपा में वापस चले गए। निर्वासन के दौरान इन दोनों नेताओं ने भी मुलायम सिंह को चुन-चुन कर अपशब्द कहे थे।

दोनों नेताओं ने मुलायम सिंह को ‘गुंडों का सरदार’ से लेकर ‘आईएसआई एजेंट’ तक कहा था। सपा ने भी अमर सिंह को एक ‘दलाल’ का उपमा दिया था, लेकिन अब वह उन्हें आदरणीय नेता कह रही है।

अतीत में इस तरह के कई उदाहरण हैं, जिनमें नरेश अग्रवाल और जगदम्बिका पाल भी शामिल हैं। अग्रवाल ने 1990 के दशक में कांग्रेस से अलग होकर रातोंरात लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी बनाई और कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार का समर्थन किया। बाद में वह सपा में शामिल हुए और वहां से बसपा में गए। अब वह सपा के राज्यसभा सदस्य हैं।

इसी तरह सनातनी कांग्रेसी नेता जगदम्बिका पाल साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए और अब वह सिद्धार्थनगर से लोकसभा सदस्य हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि नई पीढ़ी के राजनेताओं ने बार-बार चोला बदलने वाले पुराने राजनेताओं की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।

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