कोलकता, 28 जुलाई (आईएएनएस)। मशहूर लेखिका और दलितों-आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को कोलकता के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 90 वर्ष की थीं।
उपन्यास ‘हजार चौरासी की मां’ की लेखिका की देखभाल कर रहे एक डॉक्टर ने बताया, “उन्हें दिल का दौरा पड़ा और किडनी सहित उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, जिस कारण अपराह्न् 3.16 बजे उनका निधन हो गया।”
रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता लेखिका के बेटे का देहांत दो साल पहले हो गया था और तब से वह खिन्न रहने लगी थीं।
ज्ञानपीठ और पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित लेखिका का अधिक उम्र से जुड़ी बीमारियां एवं गुर्दे से जुड़ी समस्या थीं। वह एक निजी क्लिनिक में दो माह से अधिक समय से भर्ती थी।
अपने छह दशक के लेखकीय जीवन में उन्होंने 120 से अधिक पुस्तकें लिखीं। इन में 20 लघुकथा संग्रह और करीब 100 उपन्यास हैं। इसके अलावा अखबरों एवं पत्रिकाओं के लिए अनगिनत लेख और कॉलम लिखीं। इनमें से बड़ी संख्या जनजातीय जीवन पर आधारित रचनाओं की है।
बोलचाल वाले शब्दों का इस्तेमाल और अभिव्यक्ति के जरिए महाश्वेता ने ऊंची जाति के जमींदारों, महाजनों और सरकारी सेवकों के हाथों आदिवासियों के शोषण से उपजी व्यथा का चित्रण किया है।
बांग्ला उपन्यास ‘अरण्येर अधिकार’ में बिरसा मुंडा के ब्रिटिशों के खिलाफ विद्रोह का चित्रण किया है। इसी के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। छोटी मुंडा एवम तार तीर, बसई टुडु, टीटू मीर उनके अन्य उपन्यास हैं।
उनकी लघुकथाओं के संग्रह में ‘इमेजरी मैप्स’, ‘पेसेंट्स एंड रिबेल्स’ और लघुकथा ‘धोवली’ और ‘रुदाली’ भी आदिवासियों के जीवन पर ही आधारित हैं।
महाश्वेता देवी का जन्म वर्तमान बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुआ था। परिवार में कवि, लेखक और कलाकार थे। उनका बचपन बंगाली उच्च संस्कृति वाले परिवेश में ढला।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शांति निकेतन में स्थापित विश्व भारती से उन्होंने अंग्रेजी आनर्स के स्थान स्नातक की डिग्री हासिल की। बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री पाईं।
वह वर्ष 1970 से ही आदिवासियों के हक की लड़ाई में खुलकर हिस्सा लेने लगी थीं। उन्होंने पश्चिम बंगाल की जेलों में बिना किसी अपराध के वर्षो से बंद महिलाओं की रिहाई के लिए अभियान भी चलाया।